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तृतीय खण्ड प्रवचन पखुडिया . मृत्यु जय कैसे बने ? | १५६
आज अधिकाश रूप से जो आत्महत्याएं होती हैं उनमे आर्थिक स्थिति कमजोर होना ही मुख्य करण है। धन के अभाव में निर्दोप मानव तथा महिलाओ की चन्द ही घन्टो मे आत्म-हत्याएं हो जाती है। जैसे किसी लड़की को अपने पिता ने दहेज मे धन कम दिया, जितना वायदा किया था, उतना किसी कारणवश पूरा नहीं कर सका, बस धन के लोलुपी ससुराल पक्ष वालो ने उस होनहार निर्दोष वालिका पर मिट्टी का तेल छिडक कर निर्दयता पूर्वक हत्या कर दी।
किसी व्यक्ति ने व्यापार-विनिमय किया । मयोगवशात् एकवार तो आशातीत लाभ हुआ। लोभातुर होकर दूसरी बार फिर व्यापार-सट्टा आदि किये । परन्तु विधि की विडम्बना ही विचित्र है"लाभमिच्छतो मूलक्षतिरायाता" अर्थात्-लाम की लालसा मे मूल भी जाता रहा। यहां तक किचल-अचल सारी सम्पत्ति वेच दी गई, तथापि सिर पर कर्ज का भार बना रहा -
हाट बेच हवेली वेची वेच्यो घर को गेणो ।
उभी राख सेठाणी वेची तो ई न चूक्यो देणो । अब वह कर्ज के भार से भारी वना हुआ शर्म का मारा वाहर कही जा नही सकता, फिर नही सकता। क्योकि वाहर यदि घूमता है तो लोग उससे पैसे मागते हैं, दुत्कारते हैं, अपमानित भी करते हैं, भले बुरे शब्दो की वोछार कर बैठते हैं। ऐसी विकट वेला मे सगे सम्बन्धी और इर्द-गिर्द वाले इतने परोपकारी सज्जन तो हैं नही, जो उन पतित को ऊंचा उठाने में भागीदार बन सकें। जव उसकी गोद मे कमला क्रीडा किया करती थी, तब तो सव आते जाते थे । परन्तु आज उसका मुंह देखना भी पसन्द नहीं करते हैं, तो भला वे सपूत महायता क्यो देने लगे ? गले से गले और सीने से सीना क्यो लगाने लगे ? और मधुर भापण भी क्यो करने लगे ? जैसे कि
दुना भरा ऊपर चढ़ा सम्मान भी पाने लगा।
जब माल हुआ खाली तो ठोकरें खाने लगा । उमके पास दो चार वाल-बच्चे हैं । मर्दी गर्मी और वर्षा व्यतीत करने के लिए जो बुराभला, जीर्ण-शीर्ण एक मकान था वह भी पूजीपतियो के चगुल मे जाता रहा, दैनिक खर्च के लिए भी भारी कठिनाइयाँ आ खडी हुई तो भला मासिक और वार्षिक खर्च की तो वात ही क्या ?
___ सोचनीय परिस्थिति मे वह विचारता है कि अब मैं क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? जिधर जाता हू, उधर लोग अथवा भाई वन्धु देते तो कुछ है नहीं परन्तु घृणित-निन्दनीय दृष्टि से निहारते हैं । उपालम्भ का उपहार ही मिलता है। फलस्वरूप सव तरह से निराश व हताश, परेशान और धैर्य साहस छोडकर न अपने भूत-भविष्य का, न अपने नन्हे-नन्हे वाल वच्चो का विचार कर कुछ विपली वस्तु खाकर अपने इस देव-दुर्लभ जीवन दीप को जानबूझ कर वुझा ही देता है।
पारिवारिक कलह-क्लेश की पृष्ठभूमि भी जर, जोरू, जमीन पर ही आधारित है । अहर्निश आपसी सघर्प-विग्रहो से तग याकर बहुत से दुम्साहसी कायर नर-नारी आवेशान्वित होकर आत्महत्या करके अपनी जीवन लीला को समाप्त कर बैठते हैं।
अप्रशस्त राग मोह मे अधिकाश युवक युवतियो के हाथ रहते हैं। जो पहिले तो विना सोचेसमझे एक दूसरे के स्नेही बन जाते हैं । परन्तु जव पाप घट का भण्डाफोड होता है और अपने-अपने माता-पिता को इस काली करतूत के गुप्त रहस्यो का ज्ञान होता है, तव वे अपनी खानदानी और इज्जत