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१४६ । मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ
अर्थात - रघुवश के कुमार शैशव काल मे विद्याध्ययन करते, योवन वय मे जन-धन की वृद्धि करते और वृद्वकाल मे सयम योग की साधना करते हुए प्राणो का उत्सर्ग करते थे।
श्री राम, लक्ष्मण एव सीता सम्बन्धित एक बहुत ही सुन्दर प्रसग आता है जिसमे लक्ष्मण का सयमी जीवन अधिकाधिक निखरता हुआ बतलाया है-राम, लक्ष्मण और सीता एकदा तीनो वनविहार कर रहे थे। सहसा भ० राम कही पीछे रह गये और सीता भगवती को अधिक थकान का अनुभव हो रहा था । सेवा चतुर भावज-भक्त लक्ष्मण को मालम होते ही निकट घने वृक्ष की शीतल छाया मे घुटनो का तकिया बनाकर मातृवत् सीता को आराम करने के लिए आमन्त्रण दिया। सीता भगवती आराम कर रही थी कि इतने मे राम शुक पक्षी के रूप मे परीक्षार्थ उस वृक्ष पर उपस्थित होकर बोले
पुष्प दृष्ट्वा फल दृष्ट्वा दृष्ट्वा योषित यौवनाम् ।
त्रीणि रत्नानि दृष्ट्वंव फस्य नो चलते मन ? लक्ष्मण | फल-फूल एव स्त्री के खिलते हुए यौवन को देखकर किमका मन चलित नहीं होता ? अर्थान् तीनो रत्नो को देखकर अवश्य ही मन चचल होता है । तव लक्ष्मण वोले
पिता यस्य शुचीभूतो माता यस्य पतिव्रता ।
उभाभ्या य. समुत्पन्न तस्य नो चलते मन । हे शुक | भाग्यवान् पिता एव पतिव्रता माता की पवित्र कूख से जिसका जन्म हुआ है, उसका मन कदापि चलित नही होता है । शुक ने पुन मार्मिक प्रश्न रखा
घृतकुम्भ समा नारी तप्तागारसम पुमान् ।
___जानुस्थिता परस्त्री चेद् कस्य नो चलते मन ? लक्ष्मण घृत कुम्भ सम नारी और तप्त अगार तुल्य पुरुप को माना है। तो भला जिसके घुटने पर पर स्त्री सोई हुई है क्या उसका मन सयम मे रह सकता है ? प्रत्युत्तर मे सौम्यमूर्ति लक्ष्मण ने कहा
मनो धावति सवत्र मदोन्मत्तगजेन्द्रवत् ।
ज्ञानाऽकुशे समुत्पन्न तस्य नो चलते मन ।। हे शुक | माना कि पागल हाथी की तरह मन इतस्तत अवश्य दौडता है किंतु जिसके पास ज्ञान रूपी अकुश विद्यमान है उसका मन कभी भी चलित नही होता है।
सागोपाग उत्तर को सुनकर शुक रूप मे रही हुई राम की अन्तरात्मा अत्यधिक प्रसन्न हुई, राम असली रुप मे प्रगट होकर भाई लक्ष्मण को स्नेह पूर्वक गले लगाया और अन्त करण से वोलेवन्धु । तेरे सयमी जीवन से सारा रघुवश गौरवान्वित हो रहा है। वास्तव मे तेरे जैसे भाई दुनिया मे विरले ही होगे । सोने को तपाने पर वह निखरता है उसी प्रकार लक्ष्मण तेरा अन्तर्जीवन भी श्लाघनीय है। इस प्रकार इस दृष्टान्त मे इन्द्रिय एव मन का महत्वशाली सयम दर्शाया है। जो नर-नारी के लिए आचरणीय और अनुकरणीय है।
सयम के इस तरीके से यदि आज का मानव-समूदाय काम ले तो फिर वैज्ञानिको को यह