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________________ तृतीय खण्ड प्रवचन पखुडिया सयममय जीवन | १४५ वस्तुएं देखी । जिसमे तीन वन्दरो का एक मूक चित्र भी मम्मिलित था । एक बन्दर ने अपने दोनो कानो पर हाथ दे रखा, दूसरे ने आँखो पर और तीसरे ने मुंह पर हाथ दे रखा था । विस्मय मे डालने वाले उस चित्र को देख कर महात्मा गांधी वहाँ के कार्यकर्ताओ से बोले-इन चित्रो से क्या प्रयोजन ? ____ कार्यकर्ता हमारे देश मे सयम का अत्यधिक महत्त्व माना गया है। दुनिया को उपदेश देने के लिए घर-घर कौन जावे ? उपदेशक के पास इतना समय भी तो नही । उस कमी को हमारे ये तीनो वन्दर पूरी करते हैं । ये हमारे कलाकारो की विशेष सूझ-बूझ है। एक वन्दर मानव को सकेत करता है कि किसी की ओर तुरी दृष्टि नही डालना। दूसरा बता रहा है--बुरे वचन अपने मुंह से नही उगलना । तीसरा मकेत करता है—किसी की निन्दा, मिथ्या लोचना एव वुरी वाते न सुनना । कहिए, यह उपदेश क्या कम है ? इन्द्रियाँ और मन को सयमित करने का कितना सुन्दर मार्ग है । आँखे, कान और मुंह पर सयम रहने पर बहुत से क्लेश दूर हो जाते हैं। शिक्षा भरी वातें सुनकर वापूजी अत्यन्त प्रसन्न हुए। और वापिस लोटते समय उन चित्रो को अपने साथ लेकर भी आये। इन्द्रिय एव मनोनिग्रह पर भ० महावीर ने तो बहुत ही जोर दिया है । यथाजहा कुम्मे स अगाइ सए देहे समाहरे । एव पावाइ मेहावी अज्झप्पेण समाहरे ॥ हे आर्य | जैसे कछुआ अपना अहित होता हुआ देखकर अपने अगोपागो को अपने शरीर मे सिकोड लेता है, इसी तरह मेघावी भी विषयो की ओर जाती हुई अपनी इन्द्रियो को आध्यात्मिक ज्ञान से सकुचित कर रखते हैं । और भी कहा है-- आस्रवो भवहेतु. स्यात् सवरो मोक्ष कारणम् । इतीयमाहतो दृष्टि - रन्यदस्या प्रपचनम् ।। आश्रव (बाह्य-निष्ठा) भव का हेतु है और सयम-सवर (आत्म-निष्ठा) मोक्ष का हेतु है । अर्हत की सार दृष्टि मे इतना ही है, शेप सारा प्रपच है। वेदान्त के आचार्यों ने भो इन्ही स्वरो मे गाया है - अविद्या वन्धहेतु स्यात् विद्या स्यात् मोक्षकारणम् । ममेति बध्यते जन्तु न ममेति विमुच्यते ॥ अविद्या (कर्म-निष्ठा) वन्ध का हेतु है और विद्या (ज्ञान-निष्ठा) मोक्ष का हेतु है ।' जिसमे ममकार है वह वैधता है और ममकार का त्याग करने वाला मुक्त हो जाता है। वेदो मे सयमी जीवन विताने की सुन्दर व्यवस्था का वर्णन है -ब्रह्मचर्याश्रम, गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थाश्रम और मन्यासाश्रम । अर्थात २५ वर्ष की वय मे लगन करते और ४५ वर्ष की वय मे पुन वे सासारिक कार्यों से निवृत हो जाते थे और सहर्ष मगलमय जीवन-यापन करते थे। ___ रघुवश नामक मस्कृत महाकाव्य के निर्माता महाकवि कालिदास ने रधुवश के राजकुमारो के कार्य कलापो का सुन्दर चित्रण निम्न श्लोक मे प्रस्तुत किया है - शेशवेऽभ्यस्तविद्याना यौवने विषयषिणाम् । वार्द्ध क्ये मुनिवृत्तीना योगेनान्ते तनुत्यजाम् ।।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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