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तृतीय खण्ड . प्रवचन पखुडिया सयममय जीवन | १४७ कहना न पडे कि—मार दो । खत्म कर दो । परन्तु खेद है कि आज के वैज्ञानिक वर्ग विपरीत गली मे गमन कर रहे हैं । पूर्वजो के महान् उपदेशो को भूल रहे हैं। उनके वाक्यो की अवहेलना-उपेक्षाकर रहे हैं । तभी तो अमानुपिक दानवी साधनो का आविष्कार करके मानव-जीवन पर कुठाराघात कर रहे हैं । औपधि इजेक्शनो का जो तरीका अपनाया जाता है भले ही वह वाह्यदृष्टि से आज के युग को सतुष्ट करने वाला हो, परन्तु आभ्यन्तर दृष्टि से जरा मनन-मथन किया जाय तो और अधिक स्वेच्छाचार, भ्रष्टाचार और असयम का वर्धक है। इससे मानव जीवन का पतन है । मानव जीवन का पतन ही समाज का और समाज का पतन ही राष्ट्र का पतन है।
___ मानव जीवन के पतन के कई कारण समाज और देश मे वर्तमान है। जिसमे कितनीक तो जीर्ण-शीर्ण रूढियां हैं । जो मानव-जीवन को असयम को ओर घसीटती हैं। जैसे कि-लघुवय मे मातापिता ठापने लड़के-लडकियो के गले मे शादी रूपी जहरीला फाँसा डाल देते हैं। जिससे होनहार वालक-बालिकाओ का जीवन तार अस्त-व्यस्त हो जाता है। नेत्रो की रोशनी और चेहरे की चमकदमक शुष्क नीरस और फोकी पड जाती है । वे फिर विचारे घाणी के बैल की तरह जीवन पर्यंत उसी विषैली फांस मे मकडी के मानिंद जकडे रहते है । सयमी जीवन विताने का अथवा सयम पालने का सुनहरा अवसर ही उन्हें प्राप्त नहीं होता है । और कितनेक पतन के कारणो का आविष्कार आज के वैज्ञानिको ने किया है । जिससे क्षण-क्षण मे नवयुवक का सयमी जीवन लूटा जा रहा है। प्रथम कारणसिनेमा । इसके द्वारा नवयुवक समाज का भारी पतन हुआ है । गन्दे गायनो से भी मानवजीवन का भारी पतन हआ है। दिनो-दिन नानाविध फैशनो का जन्म हो रहा है। इससे भी हानि ही हुई है। शृ गार-साहित्य तथा खोटे साहित्य का आज भी पर्याप्त रूपेण सृजन हुआ है और हो रहा है । मास अण्डे कसे खाना, यह तरीका आज के अध्यापकगण नूतन साहित्य के आधार से नन्हे-नन्हें वालक-बालिकाओ को मिखाते हैं ।
यह महती कृपा आज के वाज्ञानिक वर्ग की है। उपरोक्त कारणो से मानव के सयमी जीवन को भारी क्षति पहुँची है । इन पतनवर्धक आविष्कारो की सारी जिम्मेवारी आज के वैज्ञानिक वर्ग पर ही है। क्यो नही आज का जनतन्त्र-राष्ट्र इन उपरोक्त पतन के कारणो की इति श्री करें ताकि भ्रूण मारने की और औपधियां आदि देने की नौबत ही न आए । 'न रहे वास न वजे वासुरी' । क्यो न चोर की माँ को खत्म कर दिया जाय ताकि चोर का जन्म ही न हो । यानी असयम के स्रोत को ही नष्ट करना बुद्धिमत्ता है।
विकाम की ओर बढने की भावना रखने वाले मानव के लिए सयमीवृत्ति का विकास करना अनिवार्य है । ऐन्द्रिक, शारीरिक और मानसिक शक्तियो का सुकार्यों में व्यय करना ही सयम है । यह सयम या सयमी जीवन ही उत्थान है । और असयम या असयमी जीवन ही पतन है। सयम ही सुख का राजमार्ग और असयम ही द ख की विकराल वीथिका है।
इस अशाति रो बचने के लिये भ० महावीर, वैदिकशास्त्र और विनोबा आदि सयम की ओर निर्देश करते हैं कि-सयम सजीवनी है। जो दुख से वेभान बने हुए प्राणियो को नव-जीवन प्रदान करती हैं। सयम ही वह रामबाण औपधि-इजेक्शन है जिसके सेवन करने मे अशातिरूपी व्याधि भस्म हो जाती है। सयम ही अमृत है और असयम ही विष है । सयम का अमृत पान करने के लिए भ० महावीर ने यही घोपणा की थी-"सयम खलु जीवनम्" ।