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________________ ११४ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन गन्थ एक अपराजेय व्यक्तित्व : प्रताप मुनि ! -मधुर वक्ता श्री मूलचन्द जी म० श्रद्धेय पडित प्रवर, धर्म-सुधाकर श्री प्रतापमल जी म. के साधक जीवन की स्वणिम वेला मे हृदय की श्रद्धामय पुष्पाजलियाँ समर्पित हैं । प्रकृति स्वय ही अपने साधना-पुत्र का ममतामयी शृ गार कर रही है । दिशाएँ अभिनन्दन के सगीत मे थिरक रही है । जीवन का माधुर्य उमड-उमड कर निष्ठा के साथ हिनारे ले रहा है । आपके प्रति प्रतिपल नत है । यह महका-महका वातावरण नत है । भक्ति के बोल सविनय नत हैं। ज्ञान चेतना की स्फूर्ति आपकी स्वाभाविक विशेषताओ मे से एक है। कठिन एव गभीरतम विपयों को सरलीकरण का स्वरूप देना, आपकी कला की सिद्धि है । मुनियो एव सतियो के लिए आप वाचक गुरु की योग्यता से प्रतिष्ठित हैं । अध्यापन की अनूठी शक्ति के दर्शन आप मे प्रशसनीय रूप से होते हैं । संघर्ष की क्रूरता को मुस्कान की शोभा मे बदलना, आपसे सीखा जा सकता है । ममन्वय की साक्षम्यता को आप प्रमुखता प्रदान करत हैं। आपका "मित्ती मे सव्व भूएसु" मूलमत्र है । आप "गुणिप प्रमोद" की भावना के प्रतीक हैं। आप कार्य गरिमा की सक्रियता की मान्यता को स्थापित करते हैं। लोक्पणा आपकी मनोभूमि को नहीं छू पाई है। आपके सानिध्य में समीपस्थ अतेवासी वर्ग एव सम्पर्क मे आगतजनो को आपकी गुरु कृपा का वरदायी सन्देश नये होश नये जोश के माथ वितरित होता रहता है। जीवन मे उत्तरोत्तर उर्वमुखी एव सर्वांगीण उन्नति पथ की ओर निरन्तर अग्रसर होने की महनीय प्रेरणा हम सभी को उपलब्ध होती रहती है । पुरानी पीढी की वुजुर्गता के होते हुए भी नयी प्रजा के उदीयमान अस्तित्व के समर्थक एव सरक्षक हैं । आप मे भविष्य के उत्तरदायित्व पुरुपत्व के दर्शन होते है । आप हमारे कोटि-कोटि प्रणाम के अधिकारी हैं। ऐसे पूज्यनीय पडित प्रवर श्रद्धेय मुनि श्री प्रतापमल जी महाराज के रूप मे एक अपराजेय व्यक्तित्व को मेरी मर्वतोभावेन आदराजलि समर्पित हैं । सर्वतोमुखी-सर्वाङ्गीण-सार्वभौमिक संत पुरुष ! -श्री अजित मुनि जी म० "निर्मल' परम श्रद्धे यवर्य मेवाड भूपण धर्मसुधाकर पडितप्रवर श्री प्रतापमल जी म० के अभिनन्दनीच व्यक्तित्व को श्रद्धाभिभूत अनन्त-अपरिमित वन्दन-नमन | पूज्यनीय पडित जी म० का मेरे लिए वरदायी एव स्नेह पूरित वाणी और दृप्टि का विपुल कोप मेरे बचपन से ही मुझे मुक्त रूप से प्राप्त होता रहा है। साथ ही यह भी पूर्ण विश्वास है, कि इसी प्रकार भविप्य के स्वर्णिम पथ मे भी आपके सुखद-सुहाने सवल की प्रस्तुति रहेगी। मेरा आपके प्रति पूज्य
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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