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________________ द्वितीय खण्ड अभिनन्दन शुभकामनाए वन्दनाञ्जलिया | ११५ गौरवमयी श्रद्धा का मम्वोधन "पडितजी महाराज" रहता है। जो कि यह छोटा सा शब्द मुझे अत्यन्तप्रिय है। आपकी प्रवचन एव वार्ताकला वास्तव मे अनुपम शक्ति पूर्ण है। मैंने प्रत्यक्ष रूप से यह पाया है कि विरोधी की कटुता भी आपके सम्मुख निरस्त हो जाती है । क्योकि आपका किसी के भी प्रति अप्रिय व्यवहार रहता ही नही है। आपकी गुर-सम्मति निश्छल एव निर्पेक्ष भाव से तत्परता रखती है । आप वालक से वृद्ध तक समान रूप से लोक प्रिय है। आपका प्रत्येक शुभ एव प्रगति कार्य के प्रति वेहिचक स्वीकृति-सहयोग एक अनुकरणीय प्रयास है। आप उत्माह के स्तभ, शिक्षा के प्रकाश, सेवा के धाम, जिनवाणो के सन्देशवाहक, आध्यात्मिक चिकित्सक, धर्म के प्रभावक, जीवन के गुरु उदार विचारो के धनी, स्नेह के सागर, शिष्यत्व के पोपक, गुरुजनो के नैप्टिक उपासक, सर्वतोमुखी-मर्वा गीण-सार्वभौमिक-सन्त पुरुप, चेतना के उत्कर्प ध्र व, साधना मगीतिका के सरगम, मौन कार्य कर, पद एव यश के निष्काम ज्योतिर्धर हैं । इस प्रकार आप मे अगणितअप्रतिम एव वैविध्य पूर्ण विशिष्टतामो की विराटता सन्निहित है । प्रमुदित मुख, प्रलव देहमान, वचनो मे निर्झर माधुर्य की मुस्कान, वय से प्रौट, स्वभाव से नवजात, चमकता भाल प्रदेश, "वादिमान मर्दक गुरु" के समन्वयी शिष्य ।। __ बस । यही तो है, हमारे पडित जी महाराज का दैहिक, वाचिक एव मानसिक गुणधर्मा प्रत्यक्ष परिचय । __ आपका मेरे प्रति अत्यन्त स्नेहभाव रहता है। आपने मेरी शिशुवत भावनाओ का प्राय सम्मान ही किया है। आपकी स्तरीय प्रवीणता एव अग्रसरता की सशक्तप्रेरणा मेरे लिए वरदायिनी थाती है। ____ मेरे 'प्रतीक गुरु' के पुण्य-पुनीत विकासमान व्यक्तित्व को मेरी सम्मानित आदरजलि सपित है।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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