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________________ द्वितीय खण्ड . अभिनन्दन शुभकामनाए वन्दनाञ्जलिया | ११३ अन्त मे वीर प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि गुरुदेव दीर्घायु होवे एव आपकी प्रेरणाएँ एव आशीर्वाद मे सघ-समाज एव राष्ट्र के अन्दर शान्ति एव "वसुधैवकुटम्बकम्' की भावनाओ से एक दूसरे का जीवन प्रेम प्रकाश की और पल्लवित-विकसित होता रहे। हजारों साल नरगिस अपनी वेनूरी पै रोती हैं। बड़ी मुश्किल से चमन मे दिदावर पैदा होता है ।। हार्दिक अभिनन्दन ! -मदन मुनि 'पथिक' महापुरुपो का जन्म अपने लिये नही, विश्व, समाज और उस दलित वर्ग के लिये होता है, जो सदियो से उपेक्षित और प्रताडित है। यह बहुत बड़े सौभाग्य की बात है कि भारतीय तत्त्व चेतना के स्वर समय-समय पर ऐसे ही महापुरुपो के द्वारा मुखरित हुए हैं जो अपने से अधिक अन्य प्राणियो के कप्ट और पीडाओ को महत्त्व देते थे। हमारा इतिहास गवाह है कि यहां स्वार्थी विपय पोषक और लोलुप व्यक्तियो को कभी भी महत्त्व नही मिला, भारतीय जनमानस सद्गुणोपासक रहा, क्यो कि हमारे प्रतिनिधि महापुरुप वस्तुत सद्गुणो के साक्षात् अवतार थे। ___भारतीय सस्कृति में जैन सास्कृतिक धारा का अपना अन्यतम स्थान है । यह गर्व नही, किन्तु गौरव की बात है कि त्याग-वैराग्य के क्षेत्र मे, दान और सेवा के क्षेत्र मे जितने महापुरुप भारत को इस परम्परा ने दिये उतने सभवत अन्य धाराएं नहीं दे सकी। भगवान महावीर से पूर्व के इतिहास को गौण भी कर दें तो भी तत्वज्ञ गौतम स्वामी, महान त्यागी जम्बू, प्रभव, श्री सुधर्मा आदि अध्यात्म साधना के सर्वोच्च शिखर को छ्ते हुए कई स्वर्ण कलशवत् देदीप्यमान उत्तम महापुरुपो का भव्य इतिहास हमारे पास है। महान् क्रान्तिकारी वीर लोकाशाह, पूज्य श्री धर्मदास जी म०, पू. श्री लवजी ऋपि, पू० श्री धर्मसिंह जी, पूज्य श्री जीवराज जी म० आदि महान क्रान्तिकारी महान आत्माओ के तेजस्वी कार्यकलापो से हमारा इतिहास सर्वदा अनुप्राणित रहा है। इनकी उत्तरवर्ती परम्पराओ का कुछ परिचय देना भी लगभग एक ग्रन्थ रचना जितना है । जैन सास्कृतिक-धार्मिक उपवन मे यहा हजारो रग विरगे सुन्दर पुष्प खिले हुए दिखाई देते हैं। सौभाग्य का विपय है कि आज हम उमी महान परम्परा के एक महान् अग्रदूत का हार्दिक अभिनन्दन कर रहे हैं। ५० रत्न मधुरवक्ता श्री प्रतापमल जी म. सा. जो स्थानकवासी जैन समाज की महान् विभूति हैं । आज मानव मात्र के वरदान स्वरूप है। मुनि श्री जी का दीर्घ सयम, अविकल प्रशसनीय शासन सेवा और श्रेष्ठ माहिय साधना अपने आप मे इतने महत्त्वपूर्ण है कि आज क्या सदियो तक अभिनन्दनीय रहेगें। में हृदय की गहराई से मुनि श्री का अभिनन्दन करता हुआ दीर्घ सयमी जीवन की शुभकामना करता हूँ।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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