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________________ ११२ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ गौरव-गाथा -श्री विमल मुनि जी म० के शिष्यरत्न श्री वीरेन्द्र मुनि जी म. मवाड भूपण गुरुदेव श्री प्रतापमल जी म० के सम्मानार्य अभिनन्दन ग्रन्थ की रूप रेखा देखते ही मेरा मावुक हृदय कुछ लिखने का साहस कर बैठा। वैसे तो गुरुदेव के सम्बन्ध में कुछ भी लिखना सूर्य को दीपक बताना है । तथापि मैं अपने भक्ति के सुमन मुनि श्री जी के चरणो मे समर्पित करता हू । आप का जीवन गुणानुरागी रहा है । यही कारण है कि-गुण रूपी सुमनो से आप के जीवन को चप्पा-चप्पा महक रहा है। एतदर्थ आप का निर्मल यश सभी प्रातो मे परिव्याप्त है। 'परोप काराय सता विभूतय' सज्जन पुरुपो का जीवन परोपकार के लिए है। तदनुसार आप भी माधुर्य भरी वाणी द्वारा सभी नर-नारी का भला किया ही करते है । ___ मुझ पर भी आप का अकथनीय उपकार रहा है जो अविस्मरणीय रहेगा । दीक्षा सम्बन्धित - विचारणा मे मेरे तात-मात एव भ्राता गण को सद्बोध प्रदान करने मे आप ने कोई कमी नही, रखी। वस्तुत आपकी महत्ती कृपा का ही यह मधुर फल है कि आज मैं साधक जीवन मे आनन्द की अनुभूति ले रहा है। ऐसे महामना परमोपकारी विश्व वात्सल्यनिधि वन्धुत्व भावना के सवल प्रेरक, मेवाड भूषण पडित वर्य श्री के चरणो मे भाव पुष्पाजलि स्वीकार हो । ऐक्यता के प्रतीक -श्री निर्मल कुमार लोढा सत विश्व के लिए नवीन चेतनाओ द्वारा विश्व के जन-मानस के जीवन को विकसित करने वाले देवदूत हैं । ये अन्धकार के मार्ग की ओर भटकती हुई जनता को प्रकाश-पथ की ओर अग्रसित करने वाले प्रकाश-स्तम्भ हैं। विश्व मे अशाति, साम्प्रदायिकता, वैमनस्यता को दूर करने वाले तथा मार्ग प्रदर्शित करने वाले सत ज्ञान के अक्षय स्रोत होते हैं । अपना जीवन जन-मानस के बौद्धिक एव सर्वस्व सुखदाय की भावनाओ से पूरित होता है। श्रद्धेय मेवाड भूपण ऐक्यता प्रेमी पण्डितरत्न श्री प्रतापमल जी महाराज साहव विश्व सत माला के एक अनमोल रत्न है । ऐवयता, मृदुलता एव वन्धुता की जन-मानस पर अमिट छाप है। विशाल हृदय-साम्प्रदायिकता से बहुत दूर ऐक्यता हेतु जीवन एक उत्तम आदर्श है । राष्ट्र के अनेक प्रातो मे विचरण कर सामाजिक सुधार-ऐक्यता एव सर्व धर्म समन्वय की भावनाओ से जनता को जीवन पथ की ओर बढाया है। सन् १९५१ मे आपका एव प्रर्वतक श्री हीरालालजी म० सा० का चातुर्माम देहली मे हुआ था। दिवाकर जी महाराज की प्रथम पुन्य तिथी पर आपके नेतृत्व एन प्रेरणा से एक विशाल सर्व धर्म सम्मेलन हुआ था। मर्व धर्म समन्वय के प्रतीक -ऐक्यता के अग्रदूत सन्त रत्न श्रद्धेय पण्डित श्री प्रतापमल जी महाराज साहब के सघ सेवाओ से सारा समाज प्रफुल्लित हो उठता है। गुरुदेव श्री के बहुमानार्य आयोजित "प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ" का जो प्रकाशन हो रहा है वह सराहनीय प्रयत्न है।।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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