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________________ द्वितीय खण्ड अभिनन्दन शुभकामनाए वन्दनाञ्जलिया | १०६ सत परम्परा मे मेवाडभूपण पण्डित रत्न श्री प्रतापमल जी महाराज का जीवन भी एक कडी है। आप आदर्ग, गोलसम्पन्नता की माक्षात् मूर्ति हैं। आप के जीवन मे सहिष्णुता, क्षमता मधुरता, विशिष्ट रूप में पाई जाती हैं। आप स्पष्ट व निर्भीक हैं । आप सत्य के पक्ष मे सुदृढता से अडे रहते है। आपके जीवन की एक प्रमुख विशेषता है कि-आने वाली विकट परिस्थितियो से आप समझौता नहीं करते वरन् उनको सुलझाना ही जानते हैं। आपने वाल्यकाल से जैन सत की कठिन साधना स्वीकार की। आप वीर-भूमि मेवाड मे स्थित देवगढ के निवासी है। "महापुरुषो को जीवनी यह हमको बतलाती है । अनुकरण कर मार्ग उनका उच्च बन सकते हैं सभी । काल रूपी रेती पर चिन्ह वे जो तज जाते हैं। आदर्श उनको मानकर आगन्तुक ख्याति पा जाते हैं।" महापुरुषो का चित समृद्धि के समय कमल के समान कोमल, मक्खन के समान स्निग्ध, स्नेह युक्त सदैव हो जाता है । परन्तु आपत्ति के समय वे अपने मन को पर्वत की चट्टान की भांति कठोर एव अचल वना लेते हैं। आप श्री के सम्पर्क में मुझे रहने का बहुत बार अवसर मिला । आप मे साघुता सेवा-भावना आदि प्रचुर मात्रा मे पाई गई। शासनदेव आप को दीर्घायु दें ताकि ऐसे महान् नर-रत्न से जन-समाज खूब लाभान्वित वने । इसी शुभ कामना के साथ • I मेरे आराध्य देव ! .-आत्मार्थी तपस्वी श्री बसन्तीलाल जी महाराज भगवान महावीर ने कहा है- “से कोविए जिणवयण पच्छ्गा सूरोदए पासति चक्खूणेण" । चाहे मानव कितना भी कोविद हो, जिनवाणी की अपेक्षा अवश्य रही है। जैसे-आखे होने पर भी देखने के लिए सूर्य की अपेक्षा। उसी प्रकार पामर प्राणी के जीवन विकास के लिए आधार चाहिए । सही दिशा-निर्दश की वहुत वडी आवश्यकता रही है । पार्थिव आंखें होने पर भो दिशा-निर्देशक के विना अनभिज्ञ आत्माओ का एक कदम भी आगे बढना हानिकारक माना है । भारतीय सस्कृति मे इसीलिए गुरु रूपी निर्देशक का बहुत बडा महात्म्य गाना गया है । गुरुगरिमा-महिमा के पन्ने के पन्ने लिखे गये है। तथापि गुरु के गुणों का चित्रण एव विश्लेपण करने मे लेखक एव कविगण असफल रहे हैं। गुरु-महात्म्य को इस प्रकार दर्शाया है पिता माता-भ्राता प्रिय सहचरी सूनु निवह सुहृत् स्वामी माद्यत्करि भट रथाश्वपरिफर निमन्त जन्तु नरफकुहरे रक्षितुमल, गुरो धर्माधर्म - प्रकटनपरात फोऽपि न पर ।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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