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________________ १०८ | मुनिश्री प्रताप अभिनन्दन ग्रन्थ हसते हुए उनका सामना करते है और साधना के पथ पर बढते हुए चले जाते हैं । वे कभी पीछे नही हटते हैं । उनका हृदय सुख के समय फूल मा कोमल होता है, और सकट के समय शैल सा कठोर, अकम्पअडोल । सत जीवन राग, द्वेप, कपाय से विल्कुल परे होता है । वस निरन्तर अपने लक्ष्य की ओर वढता रहता है । एक कवि ने कहा है संसार द्वेष की माग मे जलता रहा पर सन्त अपनी मस्ती मे चलता रहा । सन्त विष को निगल करके भी सदा, ससार के लिये अमत उगलता रहा ।। परोपकार, दया, स्नेह, मधुरता, शीतलता आदि इनके मुख्य गुण हैं । कहा हैसाधु चन्दन बावना शीतल ज्यारो अंग । लहर उतारे भुजग की देदे ज्ञान को रंग ।। प्रताप की प्रतिभा -तपस्वी श्री लाभचन्द जी महाराज भारत एक चिन्तनशील राष्ट्र है और उमकी विशिष्टता है आत्म-साधना । आत्मा परमात्मा के स्वत्प को पहिचानना, समझना। व्यग्रता और समग्रता के कारणो को देखना परखना । इस देश के कण-कण में पवित्रता पावनता है। यहां की विशिष्टता है आध्यात्मिकता | अपने जीवन को देखना, परखना, निरीक्षण तथा परीक्षण करना । इस प्रकार की महत्ता अन्य देश यूनान, यूरोप आदि ने भी प्राप्त न की। पाश्चात्य देशो मे आत्मा का जो वर्णन किया गया है वह मुख्यतया जड प्रकृति को समझने के लिए है किंतु भारत ने आत्मा को परखने के लिए जड प्रकृति का विवेचन किया। सच्चाई तो यह है कि भारतीय सत आ-मा और परमात्मा की खोज के लिए अनादि काल से प्रयत्नशील हैं। अगणित सतो ने उसमे सम्पूर्ण सफलताएं भी प्राप्त की हैं। भारत की और खामकर जनसस्कृति की यह विशिष्टता है, सभी को माथ लेकर चलना सभी के विचारो को समझना, समन्वय करना । पाश्चात्य संस्कृतियो की तरह भारतीय दर्शनो मे मौलिक एक दूमरो का मतभेद नही है। जैन मस्कृति का मुख्य लक्ष्य है-सत्य का साक्षात्कार करना, सत्य को जीवन मे उतारना, सत्य चिन्तन करना । ___ भारत की शप्यण्यामला भूमि जो आध्यात्मिकता की भूमि है और रही है, उसका कारण सत कृपा, मत की तप साधना । एक मस्कृत के अनुभवी ने कहा है कि सत' स्वत प्रकाशते, न परतो नृणाम् कदा । आमोदो नहि कस्तूर्या, शपथेन 'वभाव्यते ॥ अर्थात्-- मत्पुरुषो के सद्गुण स्वय ही प्रकाशमान होते हैं । दूसरो के प्रकाश से नही । कस्तूरी की मुगन्ध शपथ दिलाकर नही बताई जाती। उसकी खुशबू उसकी महत्ता प्रगट करती है। इसी प्रकार महापुरुपो का जीवन भी मद्गुण-शीलता मदाचार की महक प्रदान करनेवाला होता है । साधना के उत्तम शिखर पर पहुचने के लिए ज्ञान, दर्शन, चारित्र की मशाले लेकर अनाना धकार को विच्छिन्न करने के लिए वे सदा प्रयत्नशील रहते हैं। वे मत मार्ग में आने वाले कष्टों की परवाह न करते हुए, मुस्काते हा आगे कदम वढाते हुए वे अपनी मजिल प्राप्त कर लेते है। इतिहास के पृष्ठो पर अनेक नाम अमिट यक्ति है जगे--सुदर्णन, श्रीपाल, महावीर गौतम, खदक आदि समुज्वल नाम प्रात स्मरणीय हैं।
SR No.010734
Book TitlePratapmuni Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshmuni
PublisherKesar Kastur Swadhyaya Samiti
Publication Year1973
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size11 MB
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