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। प्राकृत साहित्य का इतिहास वह कंठ को पकड़ता है नयनों का जोर से चुम्बन लेता है, बस्न का अपहरण कर लेता है-इस प्रकार प्रथम नुरत में रजनी अपने आप ही बात जाता है।
गेण्हह पलोएह इमं विअसिअवअणा पिअस्स अप्पेइ । घरणी सुअस्स पढमुब्भिण्णदन्तजुअलंकि बोरं ॥
(स०कं०३, १३८, गा०स०२, १००) यद् लो और देखो, यह कह कर हँसमुख नायिका अपने बालक के नये-नये दांतों द्वारा चिह्नित बेर को अपने पति को देती है (इसमें प्रसव के पश्चात् संभोगसुख की योग्यता का सूचन होता है)। (भावअलंकार का उदाहरण)
गोत्तक्खलणं सोऊण पिअअमे अज मामि छणदिअहे। वज्झमहिसस्स माल व्व मण्डणं उअह पडिहाइ॥
(स० कं०५,१४२ गा०स०५,९६) आज उत्सव के दिन अपने प्रियतम के मुख से अपने नाम की जगह किसी दूसरी नायिका का नाम सुनकर, देखो, उसके आभूषण, वध को ले जाये जाते हुए भैंसे की माला के समान, प्रतीत होने लगे।
गोलातटट्टि पेच्छिऊण गहवइसुअं हलिअसोण्हा। • आढत्ता उत्तरिडं दुक्खुत्ताराइ पअवीए ॥
(स० के० ३, १४१, गा० स० २,७) गोदावरी नदी के तट पर गृहपतिपुत्र को देख कर हलवाहे की पतोहू कठिन मार्ग से जाने के लिए उद्यत हो गई।
(इस आशा से कि अपने हाथ का अवलंबन देकर वह उसे रोकेगा) गोलाविसमोआरच्छलेण अप्पा उरम्मि से मुक्को । अणुअम्पाणिद्दोसं तेण वि सा गाढ़मुअऊढा ॥
(स० कं० ३, ७४, ५, २२५; गा० स० २,९३) गोदावरी का यह उतार विषम है, इस बहाने से नायिका ने अपने शरीर का भार नायक के वक्षस्थल पर रख दिया; नायक ने भी अनुकम्पा के बहाने उसका गाढ़ आलिंगन किया । ( अन्योन्य अलंकार का उदाहरण)
घडिउरुसंपुडं णववहूए जहणं वरो पुलोएइ ।
संदरणवकवाडं दारं पिव सग्गणअरस्स॥ (शृंगार ४,७) वर नववधू के उरुद्वय से संपुट जघन का अवलोकन कर रहा है, मानो बन्द किया हुआ स्वर्गनगर का द्वार हो।
घरिणीए महाणसकम्मलग्गमसिमइलिएण हत्थेण । छित्तं मुहं हसिज्जइ चन्दावत्थं गर्भ पइणा ॥
(स० कं०४, ६%
3५,३८२, गा० स०१,१३) रसोई के काम में लगी हुई किसी नायिका ने अपने मैले हाथ अपने मुंह पर लगा लिए जिससे चन्द्रावस्था को प्राप्त अपनी प्रिया को देख कर उसका प्रियतम