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नासिक का शिलालेख झंझावात से गिरे हुए गोपुर और प्राकार का निर्माण कराता हुआ। कलिङ्ग नगरी में ऋपितडाग की पैड़ियाँ उसने बंधवाई, सर्वप्रकार के उद्यानों का पुनरुद्धार किया | (४) पैंतीस शत-शहस्र प्रजा का रंजन किया ।
नासिक का शिलालेख वासिष्ठीपुत्र पुलुमावि का नासिक गुफा का एक दूसरा शिलालेख है जो ईसवी सन् १४६ में नासिक में उत्कीर्ण किया गया था। इसमें राजा के भाट की मनोदशा का चित्रण किया है
सिद्धं । रबो वासिठीपुतस पसरि-पुलुमायिस सवछरे एकुनवीसे १०+६गीम्हाणं पखे बितीये २ दिवसे तेरसे १०+३ राजरबो गोतमीपुतस हिमव(त) मेरुमंदर-पवत-सम-सारस असिकअसक-मुलक-सुरठ-कुकुरापरंत-अनुपविदभ-आकरावंति-राजस विझछवत-पारिचात-सयह (ह्य) कण्हगिरि-मचसिरि-टन मलय-महिदसेटगिरि-चकोरपवत-पतिस सवराज( लोक ) म () डलपतिगहीत-सासनस दिवसकर-( क )र-विबोधित-कमल-विमल-सदिसवदनस तिसमुद-तोय-पीत-वाहनस-पटिपू()-ण-चंदमंडल-ससिरीक-पियदसनस.." सिरि-सातकणिसमातुय महादेवीय गोतमीय बलसिरीय सचवचन-दान-खमा-हिसानिरताय तप-दम-नियमोपवास-तपराय राजरिसिवधु-सदमखिलमनुविधीयमानाय कारितदेयधम ( केलासपवत )-सिखर-सदिसे (ति) रण्हु-पवत-सिखरे विम (नि) वरनिविसेस-महिढीकं लेण ।
-सिद्धि हो ! राजा वासिष्ठीपुत्र पुलुमावि के १६ वर्ष में ग्रीष्म के द्वितीय पक्ष के २ दिन बीतने पर चैत्रसुदी १३ के दिन राजराज गोतमीपुत्र, हिमवान् , मेरु और मन्दर पर्वत के समान श्रेष्ठ,
१. वृहत्कल्पभाष्य (१.३१५०) इसका उल्लेख है । इसका इसिवाल नाम के वानमंतर द्वारा निर्माण हुआ बताया गया है।
२. दिनेसचन्द्र सरकार, वही, पृ० १९६-९८ ।