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प्राकृत साहित्य का इतिहास
ऋषिक, अश्मक, मूलक, मुराष्ट्र, कुकुर, अपरान्त, अनूप, विदर्भ और आकरावंति के राजा; विन्ध्य, ऋक्षवत्, पारियात्र, सह्य, कृष्णगिरि, मर्त्यश्री, स्तन, मलय, महेन्द्र श्रेष्टगिरि और चकार पर्वतों के स्वामी; सर्व राजलोकमंडल के ऊपर शासन करनेवाले; सूर्य की किरणों के द्वारा विबोधित निर्मल कमल के सदृश मुखवाले, तीन समुद्र के अधिपति, पूर्ण चन्द्रमंडल के समान शोभायुक्त प्रिय दर्शन वाले ऐसे श्री शातकर्णि की माता महादेवी गौतमी बलश्री ने सत्यवचन, दान, क्षमा और अहिंसा में संलग्न रहते हुए, तप, दम, नियम, उपवास में तत्पर, राजपि बधू शब्द को धारण करती हुई गौतमी बलश्री कैलाश पर्वत के सदृश त्रिरश्मिपर्वत के शिखर पर श्रेष्ठ विमान की भाँति महा समृद्धि युक्त एक गुफा (लयन ) खुवाई |
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शिखर के