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प्राकृत साहित्य का इतिहास
नमो अरतानं । नमो सव- सिधानं ॥ परेण महाराजेन महामेघ वाहनेन चेति राजव (1) सन्वधनेन पथ- सुभ-लखनेन चतुरंतलुठ (ण) गुण - उपितेन कलिंगाधिपतिना सिरि-खारवलेन (पं) दरस-वसानि सीरि - ( कडार) - सरीरवता कीडिता कुमारकीडिका ॥
ततो लेखरूप गणना ववहार विधि-विसारदेन । सव-विजायदातेन नव-वसानि योवरजं ( प ) सासितं ॥ संपुंण चतुवीसति सो तदानि वधमानसेसयो - बेनाभिविजयो ततिये
लिंग - राज वसे पुरिस-युगे माहाराजाभिसेचनं पापुनाति । अभिसितमतो च पथमे वसे वात विहत गोपुर-पाकार-निवेसनं पटिसंखारयति । कलिंग नगरि खवीर• इसिताल-तडागपाडियो च
बंधात सयान- (टि ) संठपनं च कारयति || पनतीसाहि सतसहसेहि पकतियो च रंजयति ॥' ( १ ) अहंतों को नमस्कार । सर्वसिद्धों को नमस्कार । वीर महाराज महामेघवाहन चेदि राजवंश के वर्धक, प्रशस्त शुभलक्षण वाले, चारों दिशाओं में व्याप्त गुणों से अलंकृत कलिंगाधिपति श्री खारवेल ने
( २ ) १५ वर्ष तक शोभावाली अपनी गौरवयुक्त देह द्वारा बालक्रीड़ा की । उसके पश्चात् लेख्य, रूप, गणना, व्यवहार और धर्मविधि में विशारद बन सर्व विद्याओं से संपन्न होकर नौ वर्ष तक उसने युवराज पद का उपभोग किया । फिर २४ वर्ष समाप्त होने पर, शैशवकाल से ही जो वर्धमान है और अभिविजय में जो वेनराज के समान है, उसका तृतीय
(३) पुरुषयुग ( पीढ़ी ) में कलिङ्ग राज्यवंश में महाराज्याभिषेक हुआ । अभिषिक्त होने के बाद वह प्रथम वर्ष में
१. दिनेसचन्द्र सरकार के सेलेक्ट इंस्क्रिप्शन्स, जिल्द १, युनिवर्सिटी ऑव कलकत्ता, १९४२, पृष्ठ २०६ से उद्धृत ।