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प्राकृत साहित्य का इतिहास
विद्याध्ययन करने के लिये बैठा दिया। रत्नचूड ने छंद, अलंकार, काव्य, नाटक आदि का अध्ययन किया ।
जब वह बड़ा हुआ तो कोई विद्याधर उसे उठाकर ले गया । किसी जंगल में पहुँचकर वह एक तापस से मिला । वहाँ राजकुमारी तिलकसुन्दरी से उसकी भेंट हुई। दोनों का विवाह हो गया। जब वे नंदिपुर जा रहे थे तो तिलकसुन्दरी को कोई विद्याधर हर कर ले गया । रत्नचूड रिष्टपुर चला गया । रिष्टपुर के कानन में चामुंडा देवी के आयतन का उल्लेख है । रत्नचूड और सुरानन्दा का विवाह हो जाता है ।
राजा मध्याह्न के समय अपनी अपनी रानियों के साथ बैठ कर प्रश्नोत्तर गोष्ठी किया करते थे ।
रत्नचूड 'वैताढ्य पर्वत के लिये प्रस्थान करते समय कनकशृंग पर्वत पर शान्तिनाथ के चैत्य के दर्शन के लिये जाते हैं । शान्तिनाथ के स्नान-महोत्सव का यहाँ वर्णन है । स्वप्न सत्य होता है या नहीं, इसको दृष्टांतों द्वारा समझाया गया है । शान्तिनाथ के चरित्र का वर्णन है । आगे चलकर रत्नचूड राजश्री के साथ विवाह करता है और उसका राज्याभिषेक हो जाता है । अपनी प्रथम पत्नी तिलकसुन्दरी को वह निम्नलिखित पत्र भेजता है ।
"स्वस्ति वैताढ्य की दक्षिणश्रेणि में स्थित रथनूपुरचक्रवाल नामक नगर से राजा रत्नचूड प्रियप्रियतमा तिलकसुंदरी को सस्नेह आलिंगन करके कहता है। देवी द्वारा अपनी कुशल का पत्र भेजने से हृदय को परम संतोष मिला और चिन्ता का कठिन भार हलका हुआ ।” तथा
"नरयसमाणं रज्जं विसं व विसया दुहंकरा लच्छी । तुह विरहे मह सुंदरि, नयरमरण्णेव पडिहाई ॥ पुरओ य पिट्ठओ य पासेसु य दीससे तुमं सुयणु । दहइ दिसावलयमिणं, मन्ने तुह चिन्तरिच्छोली ॥