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रयणचूडरायचरिय
५४१ -१. पूर्णचन्द्र किसे अपने में धारण करता है ? ससं (शश अर्थात् हरिण को)।
२. किसान लोग खेत में किसकी इच्छा करते हैं ? के (जल की)।
३. अंतगुरु (जिसके अन्त में गुरु आता हो) कौन है ? स (सगण)।
४. सुख क्या है ? सं (शं-सुख) ५. फिर सुख क्या है ? कं (सुख)। ५. पुष्पों का समूह किसे देखकर प्रफुल्लित हो उठता है ? ससंकं (शशांक-चन्द्रमा को)। ६. परस्त्री किसी जार पुरुष से कैसे रमण करती ? ससंकं (सशंकं-सशंक होकर)।
रयणचूडरायचरिय (रत्नचूडराजचरित ) प्राकृत गद्य में रचित धर्मकथाप्रधान यह कृति ज्ञातृधर्मकथा नाम के आगम ग्रन्थ का सूचक है जिसमें देवपूजा और सम्यक्त्व आदि धर्मों का निरूपण किया है।' इसके रचयिता उत्तराध्ययनसूत्र पर सुखबोधा नाम की टीका (रचनाकाल विक्रम संवत् ११२६) लिखनेवाले तथा आख्यानमणिकोश के रचयिता सुप्रसिद्ध आचार्य नेमिचन्द्र हैं। यह कृति डिंडिलवद्दनिवेश में आरंभ हुई और चड्डावल्लि पुरी में समाप्त हुई। संस्कृत से यह प्रभावित है, इसमें काव्य की छटा जगह-जगह देखने में आती है। अनेक सूक्तियाँ भी कही गई हैं। लेखक ने अनेक स्थलों पर बड़े स्वाभाविक चित्र उपस्थित किये हैं। गौतम गणधर राजा श्रेणिक को रनचूड की कथा सुनाते हैं।
रत्नचूड जब आठ वर्ष का हुआ तो उसे श्वेत वस्त्र पहना और पुष्प आदि से अलंकृत कर विद्याशाला में ले गये और समस्त शास्त्र आदि के पंडित ज्ञानगर्भ नामक कलाचाय का वस्त्र आदि द्वारा सत्कार कर शुभ नक्षत्र में गुरुवार के दिन उसे __१. पंन्यास मणिविजय गणिवर ग्रंथमाला में सन् १९४२ में अहमदाबाद से प्रकाशित ।