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नम्मयासुंदरीकहा
४५९. उल्लङ्घन करके पयूषण कभी नहीं मनाया जा सकता।" इस पर राजा ने भाद्रपद सुदी चतुर्थी का सुझाव दिया, जिसे कालिकाचार्य ने स्वीकार कर लिया। इस समय से महाराष्ट्र में श्रमणपूजालय नाम का उत्सव मनाया जाने लगा। ___ चौथी कथा में कालिकाचार्य द्वारा दुर्विनीत शिष्यों को प्रबोध दिये जाने का वर्णन है। बहुत समझाने पर भी जब आचार्य के शिष्यों ने दुर्विनीत भाव का त्याग नहीं किया तो वे उन्हें सोते हुए छोड़कर अपने प्रशिष्य सागरचन्द के पास चले गये। कुछ समय पश्चात उनके दुर्विनीत शिष्य भी वहाँ आये और उन्होंने अपने कृत्यों के लिये पश्चात्ताप किया। ___ पाँचवें भाग में इन्द्र के अनुरोध पर कालिकचार्य ने निगोद में रहनेवाले जीवों का विस्तार से व्याख्यान किया। अन्त में कालिकाचार्य संलेखना धारण कर स्वर्ग में गये ।
नम्मयासुंदरीकहा ( नर्मदासुंदरीकथा) नर्मदासुंदरीकथा एक धर्मप्रधान कथा है जिसकी महेन्द्रसूरि ने संवत् ११८७ (ईसवी सन् ११३०) में अपने शिष्यों के अनुरोध पर रचना की।' यह कथा गद्य-पद्यमय है जिसमें पद्य की प्रधानता है । इसमें महासती नर्मदासुंदरी के चरित का वर्णन किया गया है, जो अनेक कष्ट आने पर भी शीलव्रत के पालन में दृढ़ रही। नर्मदासुन्दरी सहदेव की भार्या सुन्दरी की कन्या थी। महेश्वरदत्त के जैनधर्म स्वीकार कर लेने पर महेश्वरदत्त का विवाह नर्मदासुन्दरी के साथ हो गया। विवाह का उत्सव बड़ी
१. यह ग्रंथ सिंघी जैन ग्रंथमाला में शीघ्र ही प्रकाशित हो रहा है। इसके साथ देवचन्द्रसूरि की नग्मग्रासुंदरीकहा, जिनप्रभसूरि की नम्मयासुंदरिसंधि ( अपभ्रंश में ) तथा प्राचीन गुजराती गद्यमय नर्मदासुंदरी कथा भी संग्रहीत है । ये कथा-ग्रंथ मुनि जिनविजय जी की कृपा से मुझे देखने को मिले।