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प्राकृत साहित्य का इतिहास गर्दभी विद्या सिद्ध की थी। इस गर्दभी का शब्द सुन कर शत्रुसेना के सैनिकों के मुँह से रक्त बहने लगता और वे तुरत ही भूमि पर गिर पड़ते । कालकाचार्य के कहने पर शाहों की सेना ने गर्दभी का मुँह खुलने से पहले ही उसे अपने बाणों की बौछार से भर दिया जिससे वह गर्दभी आहत होकर वहाँ से भाग गई। राजा गर्दभिल्ल गिरफ्तार कर लिया गया । आचार्य कालक ने उसे बहुत धिक्कारा और उसे देश से निर्वासित कर दिया । शककूल से आने के कारण ये शाह लोग शक कहलाये और इनसे शकवंश की उत्पत्ति हुई। आगे चलकर मालव के राजा विक्रमादित्य ने शकों का उन्मूलन कर अपना राज्य स्थापित किया। विक्रम संवत् इसी समय से आरंभ हुआ | उधर आलोचना और प्रतिक्रमणपूर्वक कालिकाचार्य ने अपनी भगिनी को पुनः संयम में दीक्षित किया।
कथा के दूसरे भाग में कालिकाचार्य बलमित्र और भानुमित्र नाम के अपने भानजों के आग्रह पर भरुयकच्छ ( भडौंच) की ओर प्रस्थान करते हैं । वहाँ उन्होंने बलभानु को दीक्षित किया। राजा का पुरोहित यह देखकर उनसे अप्रसन्न हुआ और उसके कपटजाल के कारण कालिकाचार्य को बिना पर्युषण किये ही. भडौंच से चले आना पड़ा।
तीसरे भाग में आचार्य प्रतिष्ठान ( आधुनिक पैठन, महाराष्ट्र में ) की और गमन करते हैं। वहाँ सातवाहन नाम का परम श्रावक राजा राज्य करता था | कालिकाचार्य का आगमन सुनकर उसने आचार्य की वंदना की, आचार्य ने उसे धर्मलाभ दिया । महाराष्ट्र में भाद्रपद सुदी पंचमी के दिन इन्द्र महोत्सव मनाया जाता था, इसलिये राजा सातवाहन ने भाद्रपद सुदी पंचमी की बजाय भाद्रपद सुदी छठ को पर्यषण मनाये जाने के लिये कालिकाचार्य से अनुरोध किया। लेकिन आचार्य ने उत्तर में कहा-"मेरु का शिखर भले ही चलायमान हो जाये, सूर्य भले ही किसी और दिशा से उगने लगे, लेकिन पंचमी की रात्रि को