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कालिकायरियकहाणय की उस पर दृष्टि पड़ गई और उसने सरस्वती को अपने अंतःपुर में मँगवा लिया। कालकाचार्य ने राजा गर्दभिल्ल को बहुत समझाया कि इस तरह का दुष्कृत्य उसके लिये शोभनीय नहीं है, लेकिन उसने एक न सुनी। उसके बाद कालकाचार्य ने चतुर्विध संघ को राजा को समझाने के लिये भेजा, लेकिन उसका भी कोई असर न हुआ । यह देखकर कालकाचार्य को बहुत क्रोध आया, और उन्होंने प्रतिज्ञा की
जे संघपञ्चणीया पवयणउवधायगा नरा जे य । संजमउवघायपरा, तदुविक्खाकारिणो जे य ।। तेसिं वच्चामि गई, जइ एयं गद्दभिल्लरायाणं ।
उम्मूलेमि ण सहसा, रज्जाओ भट्ठमनायं ।। कायव्वं च एयं, जओ भणियमागमे
तम्हा सइ सामत्थे, आणाभट्ठम्मि नो खलु उवेहा । अणुकूले अरएहिं य, अणुसट्ठी होइ दायव्वा ॥ साहूण चेइयाण य, पडिणीयं तह अवण्णवाइं च ।
जिणपवयणस्स अहियं, सव्वत्थामेण वारेइ । -मैं भ्रष्ट मर्यादावाले इस गर्दभिल्ल राजा को इसके राज्य से भ्रष्ट न कर दूं तो मैं संघ के शत्रु, प्रवचन के घातक, संयम के विनाशक और उसकी उपेक्षा करनेवालों की गति को प्राप्त होऊँ।
और ऐसा करना भी चाहिये, जैसा कि आगम में कहा हैसामर्थ्य होने पर आज्ञाभ्रष्ट लोगों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये, प्रतिकूलगामी लोगों को शिक्षा अवश्य देनी चाहिये । साधुओं और चैत्यों और खास करके जिनप्रवचन के शत्रुओं तथा अवर्णवादियों को पूरी शक्ति लगाकर रोकना चाहिये | ___कालिकाचार्य शकफूल (पारस की खाड़ी पर्शिया) पहुँचे
और वहाँ से ७५ शाहों को लेकर जहाज द्वारा सौराष्ट्रदेश में उतरे । वर्षाऋतु बीतने पर लाटदेश के राजाओं को साथ लेकर उन्होंने उज्जैनी पर चढ़ाई कर दी। उधर से गर्दभिल्ल भी अपनी सेना लेकर लड़ाई के मैदान में आ गया। राजा गर्दभिल्ल ने