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________________ ४४९ कहारयणकोस जोग्गाजोग्गमवुझिय धम्मरहस्सं कहेइ जो मूढो। संघस्स पवयणस्स य धम्मस्स य पचणीओ सो॥ नागदत्त के कथानक में कलिंजर पर्वत के शिखर पर स्थित कुलदेवता की पूजा का उल्लेख है। देवता की मूर्ति काउनिर्मित थी। कुल परंपरा से इसकी पूजा चली आती थी। नागदत्त ने कुश के आसन पर बैठकर पाँच दिन तक निराहार रह कर इसकी उपासना आरंभ की। कुबेरयक्ष नामक कुलदेव की भी लोग उपासना किया करते थे। गंगवसुमति की कथा में उड्डियायण देश (स्वात) का उल्लेख है। सर्प के विष का नाश करने के लिये आठ नागकुलों की उपासना की जाती थी। कृष्ण चतुर्दशी के दिन श्मशान में अकेले बैठ मंत्र का १००८ बार जाप करने से यह विद्या सिद्ध होती थी। चूडामणिशास्त्र का उल्लेख है। इसकी सामर्थ्य से तीनों कालों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता था। शंखकथानक में जोगानंद नाम के नैमित्तिक का उल्लेख है जो वसंतपुर से कांचीपुर के लिये प्रस्थान कर रहा था। राजा को उसने बताया कि आगामी अष्टमी के दिन सूर्य का सर्वग्रास ग्रहण होगा जिसका अर्थ था कि राजा की मृत्यु हो जायेगी | आगे चलकर पर्वत-यात्रा का उल्लेख है। लोग चर्चरी, प्रगीत आदि क्रीडा करते हुए पर्वतयात्रा के लिये प्रस्थान करते थे। कलिंगदेश में कालसेन नाम का परिव्राजक रहता था। लिंगलक्ष नाम के यक्ष को उसने अपने वश में कर रखा था और त्रिलोक पैशाचिक विद्या का साधन किया था। रुद्रसूरिकथा में पाटलिपुत्र के श्रमणसंघ द्वारा राजगृह में स्थित रुद्रसूरि नामक आचार्य को एक आदेश-पत्र भेजे जाने का उल्लेख है। इस पत्र में षड्दर्शन का खंडन करनेवाले विदुर नामक विद्वान् के साथ शास्त्रार्थ करने के लिये रुद्रसूरि को पाटलिपुत्र में बुलाया गया था। पत्र पढ़कर रुद्रसूरि ने उसे शिरोधार्य किया और तत्काल ही वे पाटलिपुत्र के लिये रवाना हो गये । भवदेवकथानक में २९ प्रा० सा०
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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