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प्राकृत साहित्य का इतिहास दितिप्रयाग तीर्थ की उत्पत्ति बताई है, यही प्रयाग नाम से
कहा जाने लगा।' यहाँ परंपरा से आगत महाकाल देव का • चरित वर्णित है। सगर से प्रविष्ट होकर उसने पशुवध का उपदेश दिया, इस उपदेश के आधार पर पिप्पलाद ने अथवेवेद की रचना की। अनायवेद की रचना संडिल्ल के मतानुसार की गई । यहाँ वेद की परीक्षा के सम्बन्ध में एक संवाद दिया है।
सातवें लंभन के पश्चात् प्रथम खंड का द्वितीय अंश आरंभ होता है। पउमालंभन में धनुर्वेद की उत्पत्ति बताई है। पुंडालंभन में पोरागम (पाकशास्त्र ) में विशारद नंद और सुनंद का नामोल्लेख है । पुंड्रा की उत्पत्ति वताई गई है। नमि जिनेन्द्र ने चातुर्याम धर्म का उपदेश दिया। सोमसिरलंभन में इन्द्रमह का उल्लेख है। मयणवेगालंभन में सनत्कुमार चक्रवर्ती की कथा है। वह व्यायामशाला में जाकर तेल का मर्दन कराता था। जमदग्नि और परशुराम का सम्बन्ध बताया है। कान्यकुब्ज की उत्पत्ति का वृत्तान्त है। रामायण की कथा पउमचरिय की रामकथा से कई बातों में भिन्न है। दशरथ के कौशल्या, केकयी और सुमित्रा नाम की तीन स्त्रियाँ थीं। कौशल्या से राम, सुमित्रा से लक्ष्मण और केकयी से भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। मन्दोदरी रावण की. अग्रमहिषी थी। सीता मन्दोदरी की पुत्री थी। उसे एक संदूक में रख कर राजा जनक की उद्यान-भूमि के नीचे गाड़ दिया गया था। हल चलाते समय उसकी प्राप्ति हुई । जनक ने सीता का स्वयंवर रचा और राम के साथ उसका
.. यहाँ अनिकापुत्र जल में डूब गये थे, उन्हें यहाँ मोक्ष की प्राप्ति हुई थी, इसलिये इस स्थान को पवित्र तीर्थ माना गया है (आवश्यकचूर्णि, २, पृ० १७९)। लेकिन विशेषनिशीथचूर्णी (२, पृ० ६७२ साइक्लोस्टाइल प्रति) में प्रभास, प्रयाग, श्रीमाल और केदार को कुतीर्थ बातया गया है।