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आगमों की व्याख्याओं में कथायें ३५९ मंत्रियों, व्यापारियों तथा चोरों आदि के सरस आख्यान इस साहित्य में उल्लिखित हैं। चूर्णी-साहित्य के गद्यप्रधान होने से इस काल में कथा-साहित्य को एक नया मोड़ मिला | जिनदासगणि की विशेषनिशीथचूर्णी में लौकिक आख्यायिकाओं में णरवाहणदत्तकथा, लोकोत्तर आख्यायिकाओं में तरंगवती, मलयवती और मगधसेना, आख्यानों में धूर्ताख्यान, शृंगारकाव्यों में सेतु तथा कथाओं में वसुदेवचरित और चेटककथा का उल्लेख है, जिससे इस काल में कथा-साहित्य की संपन्नता का सहज ही अनुमान किया जा सकता है। दुर्भाग्य से एकाध ग्रन्थ को छोड़कर प्राकृत कथाओं का यह विपुल भंडार आजकल उपलब्ध नहीं है। अनेक ऐतिहासिक, अर्ध-ऐतिहासिक, धार्मिक और लौकिक कथायें तथा अनुश्रुतियाँ इस साहित्य में देखने में आती हैं। परंपरागत कथा-कहानियों के साथ-साथ नूतन अभिनव कहानियों की रचना भी इस काल में हुई। अतएव वनस्वामी, दशपुर की उत्पत्ति, चेलना का हरण, कूणिक का वृत्तांत, कूणिक और चेटक का युद्ध आदि वृत्तांतों के साथ-साथ ब्राह्मण और उसकी तीन कन्याएँ, धनवान और दरिद्र वणिक, हाथी और दो गिरगिट, पर्वत और महामेघ की लड़ाई, ककड़ी बेचनेवाला और धूर्त, सिद्धपुत्र के दो शिष्य, और हिंगुशिव व्यंतर आदि सैकड़ों मनोरंजक और बोधप्रद लौकिक आख्यान इस समय रचे गये। साधुओं के आचार-विचारों को सुस्पष्ट करने के लिये यहाँ अनेक उदाहरण दिये गये हैं। साधु-साध्वियों के प्रेम-संवाद भी जहाँ-तहाँ दृष्टिगोचर हो जाते हैं। ___टीका-साहित्य तो कथा-कहानियों का अक्षय भंडार है। इन टीकाओं के संस्कृत में होने पर भी इनका कथाभाग प्राकृत में ही लिखा गया है। आवश्यक और दशवैकालिक आदि सूत्रों पर टीका लिखनेवाले याकिनीसूनु हरिभद्र (ईसवी सन् ७०५-७७५) ने आगे चलकर समराइच्चकहा, और धूर्ताख्यान जैसे कथा-अन्थों की रचना कर जैन कथा-साहित्य को समृद्ध