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________________ ३५८ प्राकृत साहित्य का इतिहास वर्णन है जो अशुभ कर्म से हटाकर शुभ कर्म की ओर प्रवृत्त करती हैं। आगमों की व्याख्याओं में कथायें आगमों पर लिखी हुई व्याख्याओं में कथा-साहित्य काफी पल्लवित हुआ। नियुक्ति-साहित्य में कथानक, आख्यान, उदाहरण और दृष्टांत आदि का गाथाओं के रूप में संग्रह है। सुभाषित, सूक्ति और कहीं-कहीं समस्यापूर्ति भी यहाँ दिखाई दे जाती है। गांधार श्रावक, तोसलिपुत्र, स्थूलभद्र, कालक, करकंडू, मृगापुत्र, मेतार्य, चिलातीपुत्र, मृगावती, सुभद्रा आदि कितने ही धार्मिक और पौराणिक आख्यान यहाँ संग्रहीत हैं, जिनके ऊपर आगे चलकर स्वतंत्र कथाग्रन्थ लिखे गये। योग्य-अयोग्य शिष्य का लक्षण समझाने के लिये गाय, चंदन की भेरी, चेटी, श्रावक, बधिर, गोह और टंकण देश के म्लेच्छ आदि के दृष्टांत उपस्थित किये गए हैं। सर्वप्रथम हमें इस साहित्य में औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कामिकी और पारिणामिकी नाम की बुद्धियों के विशद उदाहरण मिलते हैं जिनमें लोक-प्रचलित कथाओं का समावेश है। इस सम्बन्ध में रोहक का कौशल दिखाने के लिये शिला, मेंढा, कुक्कुट, तिल, बालू की रस्सी, हाथी, कूप, वनखंड और पायस आदि के मनोरंजक कथानक दिये हैं जिनमें बुद्धि को परखनेवाली अनेक प्रहेलिकायें उल्लिखित हैं । नियुक्ति की भाँति संक्षिप्त शैली में लिखे गये भाष्य-साहित्य में भी अनेक कथानक और दृष्टांतों द्वारा विषय का प्रतिपादन किया गया है। धूर्तों के मनोरंजक आख्यान इस साहित्य में उपलब्ध होते हैं। ब्राह्मणों के अतिरंजित पौराणिक आख्यानों पर यहाँ तीव्र व्यंग्य लक्षित होता है। साधुओं को धर्म में स्थिर रखने के लिए लोक में प्रचलित अनेक कथाओं का प्ररूपण किया गया है। चतुर्वेदी ब्राह्मणों की कथा के माध्यम से शिष्यों को आचार्य की सेवा-सुश्रूषा में रत रहने का उपदेश है । अनेक राजाओं, राज
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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