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निशीथविशेषचूर्णी त्ति तेण पव्वतिता।
ताए सो पुच्छितो भणति-अहं पि एमेव त्ति | . -साधु (किसी साध्वी से पूछता है)-आज तुम भिक्षा के लिये नहीं गई ?
साध्वी-आर्य ! नेरा उपवास है। "क्यों ?" "मोह का इलाज कर रही हूँ, लेकिन तुम्हारा क्या हाल है ?" "मैं भी उसी का इलाज कर रहा हूँ।"
फिर वे परस्पर बोधि की प्राप्ति के संबंध में एक दूसरे से प्रश्न करने लगे।
साधु-"तुमने क्यों प्रव्रज्या ग्रहण की ?" “पति के मर जाने से।"
"मेरा भी यही हाल है (मैंने पत्नी के मर जाने पर प्रव्रज्या ली है)।”
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सो तं णिद्धाए दिट्ठीए जोएति । ताए भण्णति-किं पेच्छसि ? सो भणाति-सारिच्छं, तुम मम भारियाते हसियजपिएण लडहत्तणेण य सव्वहा सारिच्छा । तुज्झ दसणं मोहं मे णेति, मोहं करेति । ___ सा भणति-जहाऽहं तुझे मोहं करेमि, तहा मज्झवि तहेव तुमं करेसि । ____ "केवलं सा मम उच्छंगे मया। जति सा परोक्खातो मरति देवाण वि ण पत्तियन्तो । जहा तुम सा ण भवसि त्ति ।”
-साधु उसे स्नेहभरी दृष्टि से देखता है। यह देखकर साध्वी ने प्रश्न किया-"क्या देख रहे हो ?” ___ "दोनों की तुलना कर रहा हूँ। हँसने, बोलने और सुन्दरता में तुम मेरी भार्या से बिलकुल मिलती-जुलती हो । तुम्हारा दर्शन मेरे मन में मोह उत्पन्न करता है।"