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२४२ प्राकृत साहित्य का इतिहास नभचर और थलचर जीव रहा करते थे। हाथियों का एक बड़ा झुंड भी वहां रहता था। एक बार की बात है, ग्रीष्म-काल में हाथियों का वह झुंड तालाब में पानी पीकर और स्नान करके मध्याह्न के समय शीतल वृक्ष की छाया में आराम से सो गया । वहाँ पास ही में दो गिरिगिट लड़ रहे थे। यह देखकर वनदेवता ने सभा में घोषणा की
हे जल में रहनेवाले नाग और त्रस-स्थावरो! सुनो । जहाँ दो गिरगिट लड़ते हैं वहाँ अवश्य हानि होती है ।
देवता ने कहा, इन लड़ते हुओं की उपेक्षा मत करो, लड़ने से इन्हें रोको । लेकिन जलचर और थलचरों ने सोचा, इनकी लड़ाई से हमारा क्या बिगड़ सकता है। इतने में एक गिरगिट लड़ते-लड़ते भाग कर आराम से सोए हुए एक हाथी की सूंड में जा घुसा। दूसरा भी उसके पीछे-पीछे वहीं पहुँचा | बस हाथी के कपाल में युद्ध मच गया। इससे हाथी बड़ा व्याकुल हुआ और असमाधि के कारण वेदना के वशीभूत हो उसने उस वनखंड को चूर-चूर कर दिया। इससे वहाँ रहनेवाले बहुत से प्राणियों का घात हुआ। पानी में संघर्ष होने से जलचर जीव नष्ट हो गये । तालाब की पाल टूट गई। तालाब नष्ट हो गया और पानी में रहनेवाले सब जीव मर गये ।
कहीं सरस संवाद भी निशीथचूर्णी में दिखाई पड़ जाते हैं। साधु-साध्वी का संवाद पढ़िये
तेण पुच्छिता-णि गतासि भिक्खाए ? सा भण्णति-अज! खमणं ने। सो भणति-किं निमित्तं ? सा भणति-मोहतिगिच्छं करेमि । ताए वि सो पुच्छिओ भणति-अहं पि मोहतिगिच्छं करेमि । कहं बोधि त्ति लद्धा ? परोप्परं पुच्छति । तेण पुच्छिता-कहं सि पव्वइया ? । सा भणति-भत्तारमरणेण तस्स वा अचियत्त