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व्याख्यान-छट्ठा . .. जो मनुष्य उठने के बाद धर्मध्यान करने वाले हों
उनको तो साधु जगा सकता है। परन्तु उठने के बाद आरंभ-समारंभ करने वालों को साधु नहीं जगा सकता है।
अज्ञानी जीव अपने दोष नहीं देखते किन्तु दूसरों के दोपोंको देखते फिरते हैं। परन्तु वीतराग धर्स को प्राप्त
हुये आत्मा तो अपने दोषों को ही देखते हैं। और दूसरों ... के दोपोंकी तरफ उपेक्षा करते हुये सद्गुणों को ही देखते हैं।
तुम्हें सांप का, सिंह का जितना डर लगता है उतना ‘पाप का लगता है ? सांप अथवा सिंहसे तो एक ही भव बिगड़ेगा किन्तु पापसेतो अनेक भव विगड़ेंगे यह समझ लेना।
भाव श्रावक बाजार में से शाक भी लाता है तो 'छिपाकर लाता है। क्यों कि अगर कोई देखले और वह ... लाये और काटकर शाक बनावे तो उसमें अपन निमित्त
चने जिससे अपन को दोष लगता है। ...... माता अपने बालकको हंसाती भी है और रुलाती
भी है। परन्तु कव रुलाना और कव हंसाना पसी समझवाली माता हो तभी बालक का भविष्य सुधार सकती है?
. धर्मी, अधर्मी और धर्म के विरोधी इस प्रकार जीव तीन तरहके होते हैं। धर्मी आत्मा भक्ति करने योग्य है। अधर्मी आत्मा दया पात्र है। धर्मके विरोधियों की उपेक्षा करनी चाहिये क्योंकि वह मानव भव जैसा उत्तम भव पाकर के हार जाता है। . . . . . .
तथा संयमी और असंयमी इस तरह भी जीव दो प्रकार के होते हैं। गरीव मनुष्य सूखा रोटला और दाल ये दो चीजें सिर्फ खा पाता है किन्तु इस से वह संयमी नहीं कहलाता है। क्योंकि अन्य वस्तुओंका वह पञ्चक्खाणी .(प्रतिज्ञावाला) नहीं है. .. ....... ... ... ...