________________
४८
प्रवचनसार कर्णिका
-
-
-
जो संयमी में नंवर लाना हो तो अपनको पञ्चक्खाण . करना चाहिए । गुरु महाराज जव पच्चस्खाण देवं तक पच्चरखाण में पच्चक्खाई वोलते समय पच्चक्खाण लेने वालेको पच्चक्खामि और वोसिरई बोलते समय वोसिरामि कहना चाहिए । यह पच्चक्खाण विधि है।
प्रतिक्रमण के सूत्रोंका अर्थ जानने जैसा है। सूत्रों के अर्थका ख्याल हो तो प्रतिक्रमण करते समय मन उसमें लगा रहे और आत्मा उस में एकाकार बन जाता है। समझ के जो क्रिया की जाती है उसमें आनन्द आता है। .. किया समझे विना की जाती है इसीलिए उसमें आनन्द नहीं आता है।
सव विरतिधर को देवलोक में देव भी नमस्कार करते हैं।
एक मनुष्य मेरु पर्वत जितने सोने के ढेर को दानमें दे और एक आत्मा दीक्षा ले ले। इन दोनों में से महान् .. कौन ? तो जवाव है कि दीक्षा ले वही महान है।
किसी श्रावक के नियम हो कि जिनपूजा प्रतिदिन करना । और वही श्रावक अगर पोषध करे और उस दिन जिनपूजा न कर सके तो उसका जिनपूजा का नियम टूटता नहीं है। क्यों कि पोषध ये भावपूजा है। और भाव पूजा में द्रव्य पूजा का समावेश हो जाता है। . अपन अनन्त भवों से खाने पीने में मशगूल हैं फिर भी खाने पीनेकी तमन्ना छूटती नह
तीर्थकर परमात्मा अपनी माताके गर्भ में मति श्रुत और अवधि इन तीनों शानों से संयुक्त उत्पन्न होते हैं ।