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________________ ४६ प्रवचनसार कणिका - -%3 पातरी (गोचरी वापरनेके का काष्ठपात्र) चेतनो, तर्पणी (गोचरी लाने के काष्ठपात्र), स्थापनाचार्य (पंच परमेष्ठी . की स्थापना करनेकी स्थापनी) वगैरह सब होता है। वह सब व्यवस्थित रीत से रक्खा हुआ होता है। घर के सभी मनुष्य सुबह जल्दी उठ करके :साधुवेश का दर्शन करें। और भावना भावे कि अलमारी में रक्खे हुये साधुवेश को धारण करके मैं साधु कव वनगा ? आज पाप का उदय . है कि साधुनेश पहना नहीं जा सकता व पुण्य का उदय होगा और शरीर पर साधुवेश धारण किया गया होगा। घरके छोटे बच्चे पूछे कि वापुजी यह क्या है ? वाल्य-... कालमें धर्म के संस्कार मिले हों। और कदाच किसी समय इच्छा हो कि दीक्षा लेना है तो उसी समय पहनने । के काम लगें । आज तो अगर किसी को दीक्षा लेना हो तो अहमदावाद ही जाना पडे ? तुम्हारे घरमें जीमने के लिये थाली वाटका (कटोरी) कितने ? कप-रकावी कीतनी? और संयम के उपकरण कितने ? जवाब सुनने से ही समझ . में आ जायगा कि अभी संयम लेने को भावना. कितनी । दूर है ? समकिती आत्मा समकितपने में आयुष्य का बन्ध करे तो नियमा (निश्चित) वैमानिक देवलोक में ही जायगा। तुम जितना समय स्नान करने में शरीर विभूषा करने .. में व्यतीत करता हो इतना समय जिनपूजामें व्यतीत करते हो ? कपाल में यानी ललाट में किये गया केसरका तिलक यदि टेढा मेढा हो गया हो तो उसको दर्पण में देखकर व्यवस्थित करने के लिये जितना ख्याल रखते हो उतना. " ख्याल भगवान के अंग ऊपर की गई केसर पूजा में रखते हो? .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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