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________________ ... व्याख्यान-छट्ठा . .. .. . ४५. को एक एक पक्की नवकार वाली गिन करके ही जाना है इसलिये नवकार वालीयो वहां रख दी। :: मनुष्य जी जी कर के आज कितना जिये? २५-५०अथवा १०० सौ वर्ष । इतने थोड़े आयुष्य में हाय हाय,. हाय वोय, कावा दावा, बदला, वैर जहर, मेरा तेरा, सत्ता और धनकी तीव्र लालसा यह सब किस के लिये ? संसार के कावादावा में रचेपचे मनुष्यों को मरते. समय अच्छी भावना नहीं थाती है। और इस तरह मरन बिगड़ने से परभव भी विगड़ जायगा । जिसने जीवन में कुछ भी धर्म की आराधना नहीं की उसको मरते समय धर्म सुनना भी अच्छा नहीं लगेगा। इसलिये अगर .... परभव अच्छा चाहिये तो मरण को सुधारो। और मरण .. को सुधारना हो तो मृत्यु के पहले धर्म आराधना करने के लिये सावधान रहो। सिरपर मृत्युकी तलवार हमेशा लटकती रहती है। इसका तो तुम्हें ख्याल होगाही ? मेरा पैसा, मेरी स्त्री, मेरे वावा, वेवी ये सव मेरा मेरा करते हो तो वह सब तुम्हारे साथ ही आवेगा ? पूर्वभवके अनन्त संबंधियों में से कितनों को साथमें लेकर के आये हो ? .. इस लिये विचार करो कि अन्तमें साथमें क्या आयेगा? परभव का भाथा (कलेवा) क्या ? यह सव स्वस्थ चित्त से विचारो तो समझ में आजाय । ... जैनों को घरके दीवानखाने में क्या रखना चाहिये. .. यानी सजाना चाहिये । काच के कवाट में यानी अलमारी में कप-रकावी खिलौना गोठवना है या साधुवेश गोठवना: है यानी रखना है ? साधुवेश में क्या क्या होता है ? ओघो (रजो हरण) मुहपत्ती (मुख व स्त्रिका) दंडासन
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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