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प्रवचनसार कर्णिका:
मुहूर्त होनेसे जूठा रखनेवाले को पाप लगता है। तुम्हारे पानीयारे में वस्त्रादिसे लूछने की सफाई करने की व्यवस्था है कि नहीं? ना साहेब ! अरे ना! तो क्या सूक्ष्मजीवों . का कतलखाना घर में चलता है? क्या एसी हिंसा से.... वचने की उपेक्षा करने में तुम्हारा श्रावकपना शोभता है! जरा उपयोगशील बन जाओ तो विना कारण होनेवाली.. हिंसा के पापसे वच जाओगे।
वीतराग के शासन को माननेवाला पुत्र-पुत्रियों के . वैविशाल संवन्ध में अर्थात् सगाई-विवाह में, गाय-भैस.. आदि जानवरों के क्रय-विक्रयमें, भूमि सम्बन्ध में रक्खी हुई थापण यानी अमानत में और साक्षी में यानी गवाही में झूठ नहीं बोलता है।
जबतक मोह पतला नहीं होता तब तक मोक्ष नहीं मिलता है। मोहके कारण से लोग भान भूल गये हैं। नरक के दुःखों को आंख के सामने रक्खो तो मोह भी पतला हो जाय।
क्या नरक के जीव एक समान खाते हैं ? क्या उनके शरीर एक समान होते हैं ? क्या उनके श्वासोच्छवास एक समान होते हैं ? तो आचार्य महाराज कहते हैं कि ना, वहां नरक में नरक के जीवों को सब अलग अलग होता । है। बड़ी से बड़ो काया पांचसौ धनुष्य की होती है। . :
पूर्व में जैसे जैसे कर्म वांधे हैं वैसे वैसे सुख दुख यहां: मिलते हैं। नारकी में गया हुआ जीव अन्तर्मुहूर्त तक . अपर्याप्त रह करके कुंभीपाक में उत्पन्न हो जाता है । देवलोक में गया हुआ जीव अन्तर्मुहूर्त में पुष्पशय्या में। उत्पन्न होता है। नरक के जीवों को उत्पन्न होने के