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________________ व्याख्यान- पाँचवाँ ૩૭ साथ में परमाधामियो मार मारना शुरू कर देते हैं । मनुष्यगति मे नवमास तक गर्भमें रहना पड़ता है । उनके बाद जन्म होता है ! और क्रम क्रम से बढ़ता है । देवलोक में एसा नहीं है । देवलोक में तो उत्पन्न होने के साथमें ही भरयौवनावस्था होती है । नरक, तिर्यच, मनुष्य और देव इन चार गतियों में अपनी आत्मा अनन्तकाल से भटक रही है । समकिती आत्मा अविरति को डाकन मानता है और विरति को पट्टराणी मानता है । मिध्यात्वी आत्मा दुख में हाय वाप । हाय माँ । हायवोय हायवोय करता है । लेकिन समकिती जीव समताभाव से कर्म स्वरूप को विचार करके पूर्वकृत पाप के पश्चात्ताप को करता हुआ कर्मभार से हलका बनता है । तुम सब समकित धारी वनो यही शुभेच्छा ।
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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