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________________ ३२ प्रवचनसार-कर्णिका स्नान नहीं करना चाहिये। भावश्रावक को जिन पूजा और लौकिक कारण के सिवाय स्नान नहीं करना चाहिये। . पानी के एक विन्दु में भी असंख्यात त्रस जीव होते हैं। . इसी लिये श्रावक को पानी का उपयोग घी की तरह .. करना चाहिये । पानी को विना गाले ज्यों त्यों इधर उधर नहीं बोलना चाहिये। धर्मी मनुष्य को घर के मनुष्यों से कहना चाहिये कि . जब मैं मरूं तव तुम नहीं रोना। और जब तुममें से कोई मरेगा तो में भी नहीं रोऊंगा। जव अस्सी वर्षका एक वृद्ध वीमार होता है तब घर : के मनुष्य कहते हैं कि या तो ये अच्छा हो जाय अथवा . चला जाय तो ठीक । और जव बह वृद्ध मनुष्य मर जाता है तो घरके मनुष्य रोनेका ढोंग करते हैं। उनके दिल में जरा भी दुख नहीं होता है। परन्तु लोगों को दिखाने के लिये रोते हैं। घर में कोई मर गया हो तब गाँव में . स्वामी वात्सल्य में शोक के वहाने जीमने को नहीं जाते हैं। किन्तु घर मूंगकी दाल के हलुवा की कटोरी अगर .. कोई भेजे तो घर के कौने में बैठ कर खा लेने में शोक नहीं नडता है। वोलो, यह सच्चा शोक कि लोगों को . . दिखाने का शोक ? रावण की सोलह हजार रानियां रावण की मृत्यु के दिन ही केवली भगवंत के. पास जिनवाणी सुनती हैं और वैराग्य से युक्त होकर दीक्षा लेती हैं। यह जैन शासन की बलिहारी है। . आज अगर कोई इस तरह से दीक्षा ले ले तो तुमः वया करो? टीका, निन्दा अथवा प्रशंसा ? साहेव, टीका
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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