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________________ - :15BER व्याख्यान-चौथा भावदयासागर श्री महावीर परमात्माने फरमाया है कि-संसार का अभाव करनेवाले-ज्ञान, दर्शन और चारित हैं। जिनमें ज्ञान नहीं है वे पाप और पुण्य को भी नहीं : जान सकते हैं। करोड़ों वर्षों में अज्ञानी जितने-कर्म खिपाता है उतने कर्म ज्ञानी जीव श्वासोच्छ्वास मात्र में खिया सकता है। सन सूतके समान है । बन्दर की तरह इधर उधर भटकता फिरता है। भटकते हुए मनको वशमें करने के लिये हमेशा प्रवृत्ति करते रहना चाहिये। तभी मन वशमें रह सकता है। एक शेठने भूतकी साधना की। भूत वशमें होगया। शेठ जी भी काम करने को कहता था भूत वे सभी काम करता था । भूत तो साधना से बंधा हुआ था इस लिये. जा भी नहीं सकता था और बेकार भी वैठ नहीं सकता था। एक समय बेकारमें बैठे हुए उस भूतने शेठसे कहा.. कि हे शेठ काम बताओ नहीं तो मैं तुमको खाता हूँ। . शेठ घबराये और चिन्ता करने लगे। लेकिन शेठजी . होशियार थे, बुद्धिशाली थे। शेठने एक युक्ति खोज.. निकाली। शेठने भूतसे कहा जंगलमें जा और खम्भे के समान एक लकड़ा काटके ले आ। भूत भी लकड़े का एक खम्भा लाकर के सामने खड़ा हो गया। फिर भूत. शेठ घबरामद्धिशाली थालमें जा आ
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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