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________________ व्याख्यान-तीसरा करते कलह बारमें कलह वोला करे और वात वातमें क्रोध क्लेश करे तो वह संसार को बढाता है। धार्मिक क्रिया विधि पूर्वक करनी चाहिये। विधि के विना जो क्रिया की जाती है वह द्रव्य क्रिया कहलाती है। खड़े खड़े जो क्रियायें की जाती हैं के जिनमुद्रा में होती हैं। खड़े खड़े होकर की. जानेवाली क्रियाओं को खड़े होकर ही करनी चाहिये । वैठे बैठे तो वृद्ध और . बालक करते हैं। - जैनशासन को प्राप्त हुये पुण्यशालियों को अपने तन, मन और धन जैनशासन के चरणों में घर करके ही आनन्द मानना चाहिये। परिग्रह ये पांचवां पापस्थानक है। सभी अठारह पापस्थानक छोड़ना चाहिये। वीतराग का धर्म जिसके रोम रोम में वसा हो वही समकिती कहलाता है। __ आरंभ-समारंभ के ऊपर अभाव (अनासक्ति) लाने वाला ज्ञान और धर्म है। श्रुतज्ञान यह वीतराग प्रभु के शासन में दीपक समान है। श्रुतज्ञान को प्राप्त करने के लिये प्रयत्न करो यही मंगल कामना है। . . . .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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