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________________ प्रवचनसार कर्णिका - - राजसत्ता की अपेक्षा कर्मसत्ता अधिक भयंकर होती . . है। संसार के वन्धन से बंधे हुये अपन अनन्तकाल से । संसार में अटक रहे हैं। फिर भी अपन को संसार से . वैराग्य उत्पन्न नहीं होता है। धर्म के कामों में लक्ष्मी . को उपयोग करने को कहा जाता है तो "ना" कहते . हो, केवल संसार के कामों में ही लक्ष्मी को वापरने का . उपयोग करने का सीखे हो। संसारी कामों में धन खर्च करने की प्रशंसा साधु महात्मा नहीं करते हैं। अगर साधु महात्मा से धन खर्च करने की प्रशंसा कराना हो तो धनको धर्म में खर्च . करो । धर्म की लगनी लगती है तभी धर्म में धन खर्च होता है । धर्म के बड़े बड़े अनुष्ठान कराते कराते अगर एक आत्मा भी सर्व विरति धारक बन जाता है तो हमारी सेहनत सफल है। केवलज्ञानी रात को भी विहार कर सकता है । मुनिसुव्रत भगवानने एक रात में साठ योजन विहार किया था। जिनेश्वर कथित सव वातें मानो परन्तु एक बात नहीं मानो तो भी मिथ्यात्व लगता है। असत्य चार कारणों से बोला जाता है। (१) क्रोधसे (२) लोभसे (३) भयले (४) हास्य से । इन चारों कारणों से जो सर्वथा मुक्त हैं वे वीतराग कहलाते है । तत्वातत्व की सच्ची समझ तो वीतराग वचन से ही आ सकती है। इसलिये वीतराग सर्वज्ञ कथित धर्म ही सुधर्म है । . ये हैया में ले निकलना नहीं चाहिये । इतना भी जो समझे उसका बेडा पार हो गया समझ लो। - वृद्ध हो जाय वहां तक भी वारमें धार्मिक क्रिया
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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