SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - - व्याख्यान-दूसरा .. अकर्मभूमि के क्षेत्रों में दश प्रकार के कल्पवृक्ष होते हैं। जो मनोवांछित इच्छाओं को पूर्ण करते है। पौदगलिक सुख देते हैं। उन क्षेत्रों में अल्प कपायवाले जीव युगलिया तरीके उत्पन्न होते हैं। वे एक पल्योपभ से लेकर अधिक से अधिक तीन पल्योपम. आयुष्य के होते हैं। .. : मोक्षनगर में जाने का दरवाजा सम्यग्दर्शन है। समकिती आत्मा को संसार के काम करने पड़ते हैं इसलिये करता है। लेकिन मनसे नहीं। उसका मन तो देव, गुरु और धर्म में ही होता है। जिसने घर में बड़ों की आज्ञा मानी हो, यहां गुरु महाराज की आज्ञा पाली हो, उनकी सेवा करी हो और जिसके हाथ में शास्त्र की चावी हो उसे ही गीतार्थ कहते हैं। एसे गीतार्थ ही व्याख्यान देते हैं दूसरे नहीं। . भवरूपी वीज को उत्पन्न करनेवाले राग और द्वेष जिनमें नहीं हैं एसे महापुरुषों को नमस्कार हो । - समकिती नम्र भी होता है और अकड़ भी होता है। 'जहां गुण दिखाते हैं वहां नम्र और जहां गुण नहीं दिखाते . . हैं वहां अक्कड़ । ... सामायिक में संसार की बाते नहीं हो सकती हैं । __ अगर सामयिक में संसार की वातें करते हैं तो दोष लगता : है। परन्तु तुम गुरु महाराज के पास आओ और समझो। यानी यह तभी हो सकता है जब तुम गुरु महाराज के । पास आकर समझो । :. यह सव समझने के लिये तैयार हो जाओ और आत्मा - . का कल्याण सिद्ध करो यही अभिलाषा । ... :
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy