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व्याख्यान-तीसरा
श्रमण भगवान श्री महावीर परमात्मा फरमाते हैं कि जगत के जीव चार प्रकार के होते हैं :-(२) आत्मारंभी .(२) परारंभी (३) उभयारंभी (४) अनारंभी
जो खुद आरंभ-समारंभ करते हैं उनको आत्मारंभी कहते हैं। जो दूसरों के पास से आरंभ और समारंभ कराते हैं उनको परारंभी कहते हैं। ___ जो खुद करते हैं और दूसरों से भी कराते हैं उनको उसयारंभी कहते हैं।
जो खुद भी नहीं करते और दूसरों के पास भी .. ‘नहीं कराते उनको अनारंभी कहते हैं।
जगत के वन्धन ऐले मुक्त ले साधु भगवंत ही अनारंभी कहलाते हैं। क्यों कि खुद भी आरंभ समारंभ करते नहीं और दूसरों से भी नहीं कराते इसी लिये साधु भगवंत अनारंभी कहलाते हैं।
- अस्सी वर्ष की बुढिया जिसके दांत गिर गये हों ::अगर वह दही का भोजन करे तो जरा भी आवाज नहीं -आती है। :. इसी तरह से अपने को प्रातः काल की क्रियायें . करना हैं । अगर आवाज हो और उस आवाज से जागकर अपने पडोसी भी संसार की क्रियायें करने लगे तो उसका