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.. व्याख्यान-दूसरा. ... ... .. : के धर्मकी बातें करता है और जव घरमें जाता है तब
धर्मकी बातें भूलकर संसारी वातोका रसिया बन जाता है वह उभयचंदा कहलाता है। ___... जिस तरह से गेह में से कंकर दूर किये जाते हैं उसी तरह समकितो आत्मा अनर्थको करनेवाले अधर्मको.
दूर करनेवाली होती है। . ... . मिथ्यात्वी आत्मा को संसारकी प्रवृत्ति में ही वहुत .
रस होता है, परन्तु धर्म में नहीं होता। जो संसार को अनर्थ करनेवाला मानता है वही धर्मी कहलाता है। . . . सिद्धके जीव अपनसे सात राजू ऊँचे हैं । मृत्यु के समय मरने वाले का जीव मुख अथवा चक्षुमें से चला जाय तो वह जीव देव अथवा मनुष्य गति में जन्म लेता है, अगर अधःस्थानमें से निकलता है तो वह जीव नरक
गति अथवा तिर्यंचगति में जन्म लेता है और अगर शरीर .. के सभी भागों में से तदाकार होकर आत्माके प्रदेश वाहर
निकले तो उसकी आत्मा मोक्षमें जाती है। ... . जैनके घरमें अगर कोई मृत्यु शय्या पर पड़ा हो तो उसे सबसे पहले सगे सम्बन्धियों को नहीं बुलाकर गुरु महाराज को ही बुलाना चाहिये और प्रतिज्ञाबद्ध होना चाहिये । अपन किसीके नहीं हैं और कोई अपने नहीं हैं। व्यवहार से हो संसारी सम्बन्ध है। अपने साथ पुन्य
और पाप आनेवाला है। जैन अपने को संसार का एक . मुसाफिर मानता है। .. ... ...
: गुजरात के महामन्त्री उदायन युद्ध करके पीछे पाटण आ रहे थे। रास्ते में चौमासा लग जान से वही छावनी (पडाव) डाल दी। एक अशुभदिन इस महामन्त्री की तवियत