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________________ व्याख्यान दूसरा वीतराग के धर्मको प्राप्त हुई आत्मा चारों गतियों में आनन्द को नहीं मानती है, परन्तु वह तो सिर्फ मोक्ष की अमिलापा ही करती है। जो आत्मा गुरुकी भक्ति, क्षमा, एकेन्द्रिय से लेकर .. पंचेन्द्रिय पर्यन्त के सब जीवोंके प्रति दया रखती है और प्रभु पूजा आदि धर्म करती है वह शातावेदनीय कर्म का वन्ध करती है। इसके अलावा सभी आत्मा अशाता वेदनीय कर्मका वन्ध करती हैं। चौबीम दंडक का वर्णन सुनकर अपन को उसमें रहना नहीं पड़ें, दंड ना भोगना पडें एसी धर्मकी आराधना करनी पड़ेगी। जगत में धमी कम हैं और पापी अधिक हैं। संसार में रहकर अपनने जैसी कमाई की होगी वैसा फल अपन को आगामी भव में प्राप्त होगा । जो जीव पुन्य वांधे विना नये भवमें आया वह बहुत दुःखी होता है। जैसे कर्म किये होंगे वैसे ही फल भोगना होंगे । कर्मके सामने किसी की कुछ भी नहीं चल सकती है। जिस तरहसे भगवान श्री महावीर परमात्मा को कर्म भोगना पडे उसी तरह अपनको भी भोगना होंगे। जो संसारमें भी रमता है और धर्ममें भी रमता है। वह दही-दूधिया कहलाता है। जो धर्मस्थान में आकर
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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