SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचनसार कणिका ... देव, देवी, यक्ष, यक्षिणी आदिको केवल ललाट में : ही तिलक होता है। उनको केवल साधर्मी तरीके ही तिलक हो सकता है। कुछ लोग उनको नव अंग तिलक करते हैं वह ठीक नहीं है, और भगवान की पूजा करने के बादमें ही यक्ष-यक्षिणी को तिलक किया जा सकता है। . जिस तरह से पसन्द नहीं आनेवाली वस्तु को : . जवरदस्ती खाने पर आदमी का मुंह विगड़ जाता है. उसी प्रकार संसार के भोग भोगने पड़ने पर धर्मी का । दिल विगड़ता है। इसी लिये श्रावक ज्यों ज्यों धर्म करता ...जाता है त्यों त्यों आरंभ-समारंभ भी कम करता जाता है। क्योंकि वह जानता है कि आरम्भ और समारभ्भ में ... लगने से रचेपचे रहने से दुर्गतिमें जाना पड़ता है। .. ... मनुष्यदेह बसाती, दुर्गन्धवाली गटर के समान हाने . पर भी अपन को चार गतियोंमें से मनुष्य गति की ही .. जरूरत है। क्यों कि. मोक्ष की साधना. तो सर्वविरति.से ही हो सकती है और मनुष्यगति सिवाय सर्वविरति धर्म की आराधना दूसरी गतियों में संभव नहीं है। . .: . ढाई द्वीपमें रहनेवाले सूर्य और चन्द्र अस्थिर हैं। . ढाई द्वीपके वाहर रहनेवाले सूर्य और चन्द्र स्थिर हैं। जम्बूद्वीप में सूर्य और चन्द्र दो दो ही हैं। अर्थात् जम्वू. द्वीपमें दो सूर्य हैं और दो, चन्द्र हैं। .. . . भुवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी पहले और दूसरे देव. लोक के देव, मनुष्य की तरह भोग-विलास करते हैं, उनके बाद. दो देवलोक के देव स्पर्शसे ही सुख मान लेते - हैं। उसके वाद दो देवलोक के देव देवियों के दर्शन से ही तृप्ति का अनुभव करते हैं। इसके बाद दो देवलोक में
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy