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जीवनदर्शक-गीत
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खानेपीने से मेरा क्या होगा लाखों मरते हैं में भी मरूँगा धन-वैभवतो यहीं पर रहेगा मुझको एकदिनतोजानाही होगा। मगसर सुदी षष्ठीकी वो वेला राजोदनगरीमेंथा दीक्षाका मेला रामगुरुके बने पहले चेले पंचमहाव्रतका पीतेथे प्याले प्राणीमात्रको जीतनेवाला नाम भुवन विजयजी है पाया ।। ग्राम नाम हैं तवसे विचरते अनवानी पगले ही चलते जाते 'घर घर जाकरके गोचरी लाते संयमसे ही कार्य चलाते ॥ कंचन कामिनिको नहीं छूते पैसा टका पास नहीं रखते। प्राणीमात्रको प्रवचन देते एसे फ़क्कड़ जोगी वे वनके ।। 'छः छः महीनासे लोच कराते हंसते हंसते पीडाको सहते ज्ञानध्यानमें मनको लगाते सूत्रोंका सार ग्रहन करते ।। कभी उपवास कभी आयंबिल तपस्या घोर करते ही जाते एक टकका भोजन लिया है पन्द्रह वर्षकी तालीम पाते। प्राणियोंकी ये हिंसा:न करते जूठा वचन कभी नये वदते दूसरोंकी वस्तु न चुराते ब्रह्मचर्यका पालन करते ॥ अपरिग्रहका व्रत है गुरुने पाला. पंचमहाव्रत धारे हैं । सेवा गुरुवरकी खूब बजाई ज्ञान गंगा है उनसे ही पाया ॥५॥
__ - दोहा.कदम कदम पर कीर्ति चढती, नगरी नगरी जाते हैं.. लाखों लाखों वंदन करते नर नारी गुन गाते हैं ।। · जो भी आवे धर्म लाभ ये उसको देते जाते हैं
भेद भाव नहीं सुखी दुखी का सवको सीख सुनाते हैं. ।। — 'ज्ञान ध्यान से पदवी पाकर नगर नगर विचरते हैं जैसे जैसे.. आगे जाते. शिष्य संघभी बढ़ता जाये ।।