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________________ व्याख्यान - वन्तीसवाँ चरमशासनपति आसन्न उपकारी भगवान महावीर देव फरमाते हैं कि दुर्लभ एसा मनुष्यत्व और दुर्लभ एसा समकित पाकर के हे भव्यजनो तुम धर्म में उद्यम करो । " जीवाई नव पयत्थे जो जाणई तस्त होई सम्मत्तं भावेण सदहंतो अयाण माणे वि सम्मतं ॥ भगवान श्री जिनेश्वरदेव देव के द्वारा प्ररूपित जीवा दि नव तत्व को जाने और उससे अज्ञात जीव उनके प्रति श्रद्धाशील बने रहें वह जीव समकिति कहलाते हैं । घरमें एक आत्मा भी समकिती होतो पूरे घरका उद्धार हो सकता है । समकिती कहलाना है सभी को किन्तु समकिती वनने की अभिलापावाले कितने ? पुत्र और पुत्री कोलेजसे पढके डिग्री पास करने आवे तव आजके माता पिता को गौरव कितना ? और वह डिग्री पास कराने की मेहनत कितनी ? और अपनी सन्तान में समकित की प्राप्त कराने की मेहनत कितनी ? लागणी कितनी ? कोलेजकी डिग्री और समकित की डिग्री दोनों के लिये प्रयत्न करानेवाले माँवापों से पूछें कि भाई ! समकीत की डिग्री में जो कालेज को डिग्रो वाधा कारक हो तो तुम कालेज की डिग्री छोड दोगे ?
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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