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________________ व्याख्यान-वत्तीसवाँ ४०९ - ...तुम्हारे पुत्र पुत्री तो समकीत धारी बनें तव ठीक । परन्तु तुम्हारी समेकित की कसोटो तो हमने इस रीत ले करली है। . ... आर्यरक्षित चौदह विद्यामें पारंगत होकरके अपने . नगरमें आने वाला था। यह हकीकत सुनके नगरवासी आनंदको लहर तरंगों को झील रहे थे (आनन्द मना रहे थे)। चौदह विद्याका पारंगत बनके जगरो में प्रवेश करने. वाला यह आर्यरक्षित ही पहला होने से राजा उसके स्वागत को अनेक विध तैयारियां करा रहे थे। राजाशाही __ ढंगले आर्थरक्षितके स्वागत का ढोल पोटा जा रहा था। खुद महाराज-संत्री वर्ग के साथ गजराज के ऊपर बैठके स्वागत समारोह में पधारे । स्नान पूजन और कपाल - (ललाट) में लोलह तिलक करके सजे हुये आर्थरक्षित का सन्मान पूर्वक सुस्वागत खुद महाराजाने हाथी के ऊपर से नीचे उतरके किया । आर्थरक्षित चरणों में झुक गया । राजा भेट करने लगा। नगरी की तमाम जनता आनन्द .स. भरी आई । आयंरक्षित के पिता साई वहन वगैरह - सभी आये । लेकिन एक माता नहीं आई। ... पुत्र आगमन के समाचार सुन कर माता विचार करने लगी कि ये तो पेट भरने की विद्या शोख करके पुत्र आ रहा है। लेकिन आत्म विद्या में तो उसने अभी तक प्रवेश ही नहीं किया। इस लिये जो आज में भी उसके स्वागत समारोह में जाऊँगी तो मेरा पुत्र आत्मविद्या की उपेक्षा करनेवाला हो जायगा । इस लिये पुत्र को चेताने के इरादा ले वह स्वागत समारोह में नहीं आई। आर्य रक्षित चारों तरफ देखने लगा। कि माता
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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