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________________ व्याख्यान-इकतीसवाँ ४०७ उपकारी के उपकार को भूले वह कृतघ्न कहलाता है। ' जिसके घर में सुसंस्कारी वातावरण नहीं हैं। संस्कारी आचार विचार नहीं है। हय, ज्ञेय और उपादेय का विवेक नहीं है । उस घरके वालक सुसंस्कारी कहां से हो सकते हैं ? - ज्ञानी पुरुष कहते हैं कि वालः पश्यतिलिंगम् बालक वाहर की क्रिया को देखता हैं। बाहर के आचार देखकर वालक क्रिया करता होता है । . जिनवाणी के श्रवण में कैसा रस होना चाहिये वह . दिखाते हुये श्री यशो विजयजी महाराज ससकित की सज्झायमें फरमाते हैं कितरुण सुखी स्त्री परिवर्यो रे मधुर सुणे - सुर गीत । तेहथी रागे अति घणो रे . धर्स सुण्यानी रीत .. रे ... प्राणि धरिये समक्षित रंग । तुम सब भी जिनवाणी के रसिया बनो यही शुभाशीप . . .. '
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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