SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०४ प्रवचनसार कर्णिका की क्रिया विधि के ग्रन्थ बनाये हैं। उनका नाम अनुकम से देववन्दन साय और सुरुवन्दन भाष्य तथा पच्चस्त्राण . .. साप्य है। क्रिया विधि के ये खास ग्रन्थ हैं । आज क्रिया करनेवाले बढ गये हैं किन्तु क्रिया के . रहस्यको जीवन में उतारने वाले इस क्रिया विधि के अभ्यासी कितने हैं? क्या वह वस्तु शोचनीय नहीं है?... वालदीक्षितों में से ही भूतकाल में शासन प्रभावक हुए हैं। उनकी खबर तुम्हें है ही कहां? दुनियाकी नोवल, दुनियाका इतिहास देखने में तुम्हें . जितना शौख है उतना शौख धर्मवीरों के इतिहासः देखने में है? घरमें अनेकविध राचरचीखें (अलंकारों की शोमा) चाहिये सौज शौख के साधन चाहिये, रेडियो चाहिये । सव जितना हृदय में बैठा है उतना अभी धर्मग्रन्थ घर में वसाने का अपले हृदय में नहीं बैठा। इसी लिये तुम्हारी :लन्तान नास्तिक पाकती है (पैदा होती है) और माँ । बाप की आज्ञा चिराधक वनती है । अति मुक्त मुनिवरने वाल्यकाल में दीक्षा ली थी। भगवान महावीर देवने उनको स्थविर मुनियों को सौपा । एक बार स्थविर मुनियों के साथ ये वाल मुनि, .. स्थंडिल गये थे। . स्थंडिल का कार्य पूरा कर के स्थविर मुनियों की : राह देखते एक रास्ता में बैठे थे। बाल्यावस्था । इस लिये खेलने का मन हुआ। कागज की नाव बनाकर पानीः ।। में। तैरती रखके खेलने लगे। नावको तैरती देखकर वाल मुनि हर्षित वने। . .
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy