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________________ ४०३ व्याख्यान-इकतीसा गृहस्थ को भी जिनमन्दिर में जाने के पहले"सचित्त दव्य मुज्झण मचित्तं मणज्झणं मणे गतं । इग साडी उत्तरासंगे अंजली सिरसी जिण दिठे ॥ .. राजा महाराजा जिन मन्दिरमें प्रवेश करते ही शस्त्र, - छत्र, मोजड़ी (जूती), मुकुट और चामर (चवर) ये वस्तुयें जिन मन्दिरके बाहर रखके जाते हैं और एसा करना भी चाहिए उसे पांच अभिगम कहते हैं। . गृहस्थीओं को भी जिनमन्दिर में प्रवेश करते पहले सचित्त द्रव्यका त्याग, अचित्तशा अत्याग, सनकी एकाग्रता अखंड उत्तरासन और प्रभुको देखते ही दोनों हाथ जोडना इस तरह पांच अभिगम पालना चाहिए । .. मन्दिर और उपाश्रय में जाना तथा पञ्चक्खाण करते जो जो सीखे हैं और करते हैं वह ठीक है परन्तु आज वह करने को जितनी तमन्ना है उतनी उसकी विधि जानने की तमन्ना नहीं है। जिस किसी तरह करलेने में ही संतोप है। .. देववन्दन, गुरुवन्दन और पच्चरखाण की क्रिया का उपदेश देने वाले उपदेशक को उसकी विशुद्ध विधि जानने का खास उपदेश देना जरूरी है। आज नास्तिकों के द्वारा अपनी क्रियायें निन्दाती हैं। लोगों को क्रिया के प्रति अरुचि रहती है। उसका मुख्य कारण यही है कि विधि की उपेक्षा पूर्वक करने वाले क्रियाकारकों की क्रिया का दूसरों के ऊपर प्रभाव नहीं पड़ता है। .. महापुरुषोंने देव वन्दन गुरु वन्दन और पच्चक्खाण
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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