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________________ ४०२ प्रवचनसार कर्णिका । हरिणगमेषी देवने मानवलोक में आके गर्भ का संक्रमण : किया था। खरतर गच्छवाले इस प्रसंग को कल्याणक मानके .. भगवान महावीर के छः कल्याणक मानते हैं। परन्तु कल्याणक होय उस प्रसंगको तो देव-समूह मिलके उसकी उझवणी करते हैं। इस संक्रमण के प्रसंगमें तो केवल हरिणगमेषी देवके सिवाय कोई देव भी नहीं आए और इन्द्र भी नहीं आए तो फिर उसे कल्याणक कैसे कह सकते हैं। इसलिये कल्याणक छ: नहीं परन्तु पांच की मान्यता ठीक है। __ "यात्रा पंचाशक' ग्रंथसे पूज्य श्री हरिभद्रसूरिजी महाराज ने इस विषयमें सचोट मार्गदर्शन किया है। __भगवान श्री महावीरदेव के शासनसें २००४ युगप्रधान होंनेवाले हैं। उनमें से ९० जितने हुए हैं। युग प्रधान जहां विचरे वहां मर की आदि उपद्रव नहीं होते हैं । सर्व लाधु समुदाय उनकी आज्ञा में रहे। उनके ववनों का लोगों के ऊपर जब्बर प्रभाव पड़े। एक छत्री साम्राज्य स्थपाय और जैन शासनकी भारे प्रभावना हो । चक्रवर्ती जब जिनमन्दिर में जाता है तब चक्रवर्ती • पना वाहर रखके जाता है और राजा राज्य की खुमारी (अभिमान) बाहर रखके जाता है इसीलिये चैत्यवन्दन आण्यमें लिखा है कि ____ "इह पंच दिहा भिगमो अहवा . .. मुच्चन्ति राय चिन्हाई । . . खग्गं छत्तो वाणहं मउंडं । . .. ..... .. चमरे अ पंचमए ॥ ..
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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