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________________ व्याख्यान-उनत्तीसवाँ ३८१. मांगना हो मांगो। तो क्या मांगो? मेरी सात पेढी सुखी रहे । जरा भी दुख न आवे । यही मांगोगे? कि सात . पेढी तक धर्म टिका रहे यह मांगोगे? ... . जीवन जीने में सत्य को मजबूत करो । सदगुरूओं के : प्रति उपकार भावना नहीं भूलनी चाहिये। संसार के कादव कीचड में से डूबते हुये मुझे बाहर काढा है यह तो मानते हो? उपकारी के प्रति भी आज तो अपकार की: .. भावना करने वाले वहुत हैं। - जहर खाने से एक बार मरना पड़े किन्तु हिंसा करने से अनन्त मरन करना पड़ते हैं। मेघ के आगमन से जैसे मोर नाच उठते हैं वैसे ही जिनवाणी के सुनने से भक्तों के हृदय नाच उठना चाहिये । । - नमस्कार का अर्थ है पंचांग प्रणिपात । पांचों अंग" इकट्ठा करके वंदन करना उसका नाम है पंचांग प्रणिपात । यानी उसे पंचांग प्रणिपात कहा जाता है। - क्रोधके कडवे फलका वर्णन श्री उदयरत्न महाराजने सज्झायमें किया है। उस वर्णनको सुनके क्रोधसे पीछे हठो और समता सागरमें लीन वनो यही सत्य कल्याण का उपाय है। समकितमें अतिचार लगाने से व्यंतर आदि योनियों . . में जाना पड़ता है। . मोक्षमें जाने के लिये समकित यह चावी है, अनन्त भवकी औषधि है। दुर्जन मनुष्य अन्य का अहित करके राजी (प्रसन्न), होता है लेकिन सज्जन मनुष्य दूसरों का भला करके. राजी होता है। . .: भीमकुमार के सत्वसे देव, देवी, राजा और विद्याधर
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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