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________________ - ३८२ प्रवचनसार कर्णिका प्रसन्न हो गए थे । भीमकुमारने अपनी बुद्धिसे मिथ्यात्वी राजाओं को समकित बनाया । राजा, प्रजा खुशी हुई । खुशी हुए राजाने भीमकुमार को राज्यधुरा सौंपके खुद दीक्षा लेके आत्मकल्याण किया । केवल साधुवेश से ही केवलज्ञान होता है एसा नहीं है । भावना शुद्ध होनी चाहिए । प्रसन्नचन्द्र राजर्जि एक भावनाके वलसे मोक्षमें गए। इलाचीकुमार भावना के बलसे केवली चनें । भरत महाराजाने भावना के चलसे आरोसा भवनमें केवलज्ञान को प्राप्त किया । पृथ्वीचन्द्र और गुणसागर भावना के वलसे चोरीमें • और राजसभा में केवलज्ञान प्राप्त किया । इसलिये भावना ही धर्म प्राप्ति की महान् औषधि है । अयोध्या के राजा हरिसिंहके पुत्र पृथ्वीचन्द्र बालपन से ही वैरागी थे | माता-पिताके अति आग्रह से सोलह कन्याओं के साथ लग्न ग्रंथि से जुड़ाना पड़ा । लेकिन मन तो जल - कमलवत् था । पुत्रको पक्का संसारी बनाने के लिये राजाने इनको राजगादी सौंप दी । एक दिवस सिंहासन पर बैठके पृथ्वीचन्द्र चिंतनमें डूबे थे उस समय सुधन नामका व्यापारी आया । इस सुधनने एक कौतूक देखा था उसका वर्णन उसने पृथ्वीचंद्र के पास किया । गजपुर गाँव में रत्नसंचय नाम के शेठ के गुणसागर नाम का पुत्र था । ये भी वालपन से उच्च संस्कार ले के जन्मा था। संसार के प्रति उदास रहता था । माता पिताने
SR No.010727
Book TitlePravachan Ganga yane Pravachan Sara Karnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansuri
PublisherVijaybhuvansuri Gyanmandir Ahmedabad
Publication Year
Total Pages499
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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