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. व्याख्यान-अठाईसवाँ
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....... इन्हें भक्ष्य समझ के गीधने चोंच में लिया तो सही
लेकिन फिर दूसरी वस्तु समझ के फेंक दिया। और ये गिरे राजमहल के चौक में। रानी ने ये उपकरण पहचान लिये। और अपने भाई को किसीने मार डाला यह जानके तृव कल्पांत करने लगी (रोने लगी)। .. . . राजा की रानी के कल्पांत से सच्ची बात का ख्याल
आया। और विना विचारे खोटी शंका लाके एसा भयंकर मुनि हत्या का दुष्कृत्य करावे के बदले खुद उसे खूब पश्चात्ताप हुआ। वृद्धि करते राजा को केवलज्ञान हों गया। रानी को भी वैराग्यभाव की धारा वृद्धि पोते पोते केवलज्ञान हो गया। . . .
. . . . पति की आज्ञा मानना ये पत्नी की फर्ज है। लेकिन अहितकारी आज्ञा नहीं मानी जाय। ये माने तो दोनों को नुकशान हो। . .. ... आजके सुधरे हुये मनुष्य अभक्ष्यत्यागी स्त्री के मुँह में जवरदस्ती वस्तु डालने में होशियारी मानते हैं। और कहते हैं कि धर्म के.धतिंग (ढोंग) छोड़ दे। एसे धर्तिग. से कुछ भी हाथ में नहीं आयेगा।
. जो. यह चीज खाई नहीं जाती होती. तो जगत में बनती ही क्यों है ? बिन समझे.अज्ञानी विचारे एले युवक 'कर्मा को उपार्जन करके दुर्गति में जाते हैं। इसका उनको भान ही कहां से है।. .... ... ......
तुम्हारी सन्तान जब युवान होती है तव तुम किसी 'दिन बुलाके पूछते हो कि साधु होना है. अथवा संसारी? .... कृष्ण महाराजा अपनी बेटियों से पूछते थे कि बेटा .
रानी होना है या दासो?........... ।